SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 269
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ર૪૮ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ ६३९५. वेदगसम्मादिट्ठीसु अट्ठावीसपयडीणमसंखे०भागहाणि-संख०मागहाणिसंखेन्गुणहाणि लोग० असंखे०भागो अट्ट चोद्द० देसूणा । मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामि० असंखे० गुणहाणि० लोग० असंखे०भागो। अणंताणु० चउक्क० असंखे गुणहाणि. लोग० असंख०मागो अडचोद्दस० देसूणा । ६ ३९६. खइयसम्माइट्ठी० एकवीसपयडीणमसंखेज्जभागहाणि लोग० असंखे०भागो अट्टचोद० देसूणा। संखेज्जभागहाणि-संखेज्जगुणहाणि असंखेज्जगुणहाणिक लोग० असंखेज्जदिभागो। आठ और कुछ कम बारह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। विशेषार्थ-अभव्योंका वर्तमान स्पर्शन सर्व लोक है, अतः इनमें छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितपदकी अपेक्षा स्पर्शन सर्व लोकप्रमाण कहा है। इनकी दो वृद्धि और दो हानिवाले जीवोंने वर्तमानमें लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण, विहारादिकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण और अन्य प्रकारसे सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है, इसलिए यह स्पर्शन उक्त प्रमाण कहा है। ६ ३९५ वेदकसम्यग्दृष्टियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानि, संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानि स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातगुणहानिवालोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। अनन्तानुवन्धीचतुष्ककी असंख्यातगुणहानिवालोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। विशेषार्थ-वेदकसम्यग्दृष्टियोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और विहारादिकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण स्पर्शन है। इनमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी तीन हानियोंकी अपेक्षा और अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातगुणहानिकी अपेक्षा यह स्पर्शन बन जाता है, अतः यह उक्त प्रमाण कहा है। पर इनमें मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्वकी असंख्यातगुणहानि क्षपणाके समय होती है, अतः इसकी अपेक्षा स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। ६३९६ क्षायिकसम्यग्दृष्टियों में इक्कीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानि स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। संख्यातभागहानि, संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रको स्पर्शन किया है। विशेषार्थ--क्षायिकसम्यक्त्वका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और विहारादिकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण है। इनमें इक्कीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानिकी अपेक्षा यह स्पर्शन बन जाता है, अतः वह उक्त प्रमाण कहा है। इनमें इन प्रकृतियों की शेष हानियाँ क्षपणाके समय होती हैं, अतः उनकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण स्पर्शन कहा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy