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गा० २२] . वड्डिपरूवणाए पोसणं
२४७ चत्तारिखड्डि-अवढि०-अवत्तव्य० लोग० असंखे०भागो अट्ठचोद्दस देसू० । चत्तारिहाणि. लोग० असंखे० भागो अहणवचोदस० देसू० । एवं पम्म० । णवरिणवचोदसभागा णस्थि ।
६३६४. अभवसिद्धि० छब्बीसं पयडीणं असंख०मागवड्डि-हाणि०-अवढि० सबलोगो। दोवड्डि-दोहाणि केव० १ लोग० असंखे०भागो अढचोदस० सव्वलोगो वा । इत्थि-पुरस० दोवड्डि० लोग० असंख०मागो अह-बारह० चोदसभागा वा देसूणा ।
सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी चार वृद्धि, अवस्थित और अवक्तव्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भाग प्रमाण क्षेत्रका मर्श किया है। तथा चार हानिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ और कुछ कम नौ भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। इसी प्रकार पद्मलेश्यावाले जीवोंके जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि इनके त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम नौ भागप्रमाण स्पर्श नहीं है।
विशेषार्थ-पीतलेश्याका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण, विहारादिकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण और मारणान्तिक समुद्धातकी अपेक्षा कुछ कम नौ बटे चौदह राजुप्रमाण है। यहाँ छब्बीस प्रकृतियोंकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थितपदकी अपेक्षा यह स्पर्शन बन जाता है, अतः यह उक्तप्रमाण कहा है। मात्र स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी तीन वृद्धि और अवस्थितपदकी अपेक्षा कुछ कम नौ बटे चौदह राजप्रमाण स्पर्शन नहीं बनता, क्योंकि एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्भात करनेवाले इन जीवोंके इन दो प्रकृतियोंका बन्ध न होनेसे वहाँ इनकी तीन वृद्धियाँ और अवस्थान सम्भव नहीं, इसलिए इन दो प्रकृतियोंके उक्त पदोंकी अपेक्षा स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भोगप्रमाण और कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण कहा है। इसीप्रकार अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यपदकी अपेक्षा स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण घटित कर लेना चाहिए । मिथ्यात्वकी असंख्यातगुणहानि क्षपणाके समय ही होती है, इसलिए यहाँ इसकी अपेक्षा स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी चार वृद्धि, अवस्थित और अवक्तव्यपदकी अपेक्षा स्पर्शन जो मूलमें कहा है उसका स्पष्टीकरण अनन्तानुबन्धीकी असंख्यातगुणहानिके स्पर्शनके समान कर लेना चाहिए, क्योंकि दोनोंका स्पर्शन एक समान है। इन दो प्रकृतियोंकी चार हानियाँ एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्धातके समय भी होती हैं, इसलिए इनकी अपेक्षा स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण, कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण और सब लोकप्रमाण कहा है। पद्मलेश्यामें कुछ कम नौ बटे चौदह राजुप्रमाण स्पर्शन नहीं है, क्योंकि वे एकेन्द्रियों में मारणान्तिक समुद्घात नहीं करते । शेष सब कथन पीतलेश्याके समान है।
६ ३९४. अभव्योंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थित स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने सब लोकका स्पर्श किया है। दो वृद्धि और दो हानिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनाली के चौदह भागोंमें से कुछ कम आठ भागप्रमाण और सर्वलोक क्षेत्रका स्पर्श किया है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी दो वृद्धिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनाली के चौदह भागोंमेंसे कुछ कम
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