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________________ २०२२] वड्डिपरूवणाए परिमाणं । २२९ $ ३६९. आदेसेण णेरइएसु अट्ठावीसं पयडीणं सवपदवि० असंखेज्जा । एवं सव्वणेरइय-सव्वपंचिंदियतिरिक्ख-मणुसअपज्ज०-देव०-भवणादि जाव णवगेवज्ज०. सव्वविगलिंदिय-पंचि० अपज्ज-सव्वचत्तारिकाय-बादरवणफदिपत्तेय०सरीरपज्जत्तापज्जत्ततसअपज्ज०-वेउब्धिय०-वेउ०मिस्स०-विहंगणाणि त्ति । ___३७०. तिरिक्खेसु सव्वपयडीणं सबपदवि० ओघं । एवं सव्वएइंदिय-सव्ववणफदि० सव्वणिगोद०-ओरालि०मिस्स-कम्मइय-मदि-सुद अण्णाण-असंजद०-किण्ह-णील-काउ०मिच्छादि०-असण्णि-अणाहारि त्ति । $३७१. मणुस्सेसु छब्बीसं पयडीणं सव्वपदवि० असंखेजा। णवरि असंखे०गुणहाणि० अणंताणु०चउक्क० अवत्तव्व०विहत्तिया च संखेज्जा। सम्मत्त-सम्मामि० चत्तारिवाड्डि-अवद्विद-अवत्तव्यवि० संखेज्जा। चत्तारिहाणि० केतिया ? असंखेज्जा । मणुसपज्ज०-मणुसिणी०-सव्वट्ठ०देवाणं अट्ठावीसपयडीणं सव्वपदा संखज्जा। अणुद्दिसादि जाव अवराइदं ति अट्ठावीसपयडीणं सव्वपदा असंखेज्जा। णवरि सम्मत्त० संखे० गुणहाणिवि० संखेज्जा। $३७२. पंचिंदिय-पंचिं०पज्ज. अट्ठावीसं पयडीणं सव्वपदवि० के० १ असंखेज्जा। णवरि वावीसं पयडीणमसंखेजगुणहाणिवि० संखेज्जा । एवं तस-तसपज्ज०-पंचमण.. ६३६९. आदेशकी अपेक्षा नारकियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सब पद स्थितिविभक्तिवाले जीव असंख्यात हैं। इसी प्रकार सब नारकी सब पंचेन्द्रिय तियच, मनुष्य अपर्याप्त, सामान्य देव, भवनवासियोंसे लेकर नौ ग्रैवेयकतकके देव, सब विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय अपर्याप्त, सब पृथिवी आदि चार स्थावरकाय, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर पर्याप्त और अपर्याप्त, बस अपर्याप्त, वैक्तियिककाययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी और विभंगज्ञानी जीवोंके जानना चाहिए । ६३७०. तिर्यंचोंमें सब प्रकृतियोंकी सब पद स्थितिविभक्तिवाले जीव ओघके समान हैं। इसी प्रकार सब एकेन्द्रिय, सब वनस्पतिकायिक, सब निगोद, औदारिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, कृष्णलेश्यावाले, नीललेश्यावाले, कापोतलेश्यावाले, मिथ्यादृष्टि, असंज्ञी और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिए। ६३७१. मनुष्योंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी सब पद स्थितिविभक्तिवाले जीव असंख्यात हैं। किन्तु इतनी विशेषता है कि असंख्यातगुणहानि स्थितिविभक्तिवाले और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अवक्तव्यस्थितिविभक्तिवाले जीव संख्यात हैं । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी चार वृद्धि, अवस्थित और अवक्तव्य स्थितिविभक्तिवाले जीव संख्यात हैं। चार हानि स्थितिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। मनुष्यपर्याप्त, मनुष्यनी और सर्वार्थसिद्धिके देवोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सब पद स्थितिविभक्तिवाले जीव संख्यात हैं। अनुदिशसे लेकर अपराजिततकके देवोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सब पद स्थितिविभक्तिवाले जीव असंख्यात हैं। किन्तु इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वकी संख्यातगुणहानि स्थितिविभक्तिवाले जीव संख्यात हैं। ६३७२. पंचेन्द्रिय और पंचेद्रिय पर्याप्तकोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सब पद स्थितिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। किन्तु इतनी विशेषता है कि बाईस प्रकृतियोंकी असंख्यात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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