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________________ २२८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ वेउम्चिय०-वेउब्वियमिस्स० - इत्थि०-पुरिस - विहंग- चक्खु०- तेउ०-पम्म०सण्णि ति। ३६७. मणुसपज्ज०- मणुसिणी०-सव्वट्ठ०देव. अट्ठावीसं पयडी० असंखेज्जभागहाणिवि० संखेज्जा भागा। सेसपदवि० संखेज्जदिभागो। एवमवगद०-मणपज्ज.. संजद०-सामाइय-छेदो०-परिहार ०-मुहुमसांपरायसंजदे त्ति । आणदादि जाव अवराइद त्ति अट्ठावीसं पयडी० असंखेज्जभागहाणि केव० ? असंखज्जा भागा। सेसपदवि० असंखेजदिभागो । एवमाभिणि-सुद०-ओहि०-संजदासंजद०-ओहिदंस०-सुकले०-सम्मा. दि०-वेदग-उवसम०-खाय० सम्मामिच्छादिहि त्ति । आहार-आहारमिस्स० णत्थि भागाभार्ग। एवमकसा० जहाक्खाद०-सासणसम्मादिहि त्ति । एवं भागाभागाणुगमो समत्तो। ३६८. परिमाणाणुगमेण दुविहो णिद्देसो-ओघे० आदेसे० । ओघेण छब्बीसं पयडीणमसंखेज्जभागवड्डि-हाणि-अवडिदवि० केत्ति ? अणंता । सेसपद०वि० असंखेजा। णरि मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक० असंखज्जगुणहाणिवि० संखेज्जा । सम्मत्त-सम्मामि० सव्वपदवि० असंखेज्जा। एवं कायजोगीसु ओरालि०-णqसयवेद० चत्तारिक०-अचक्खुदंस०-भवसि०-आहारि ति । काययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, स्त्रीवेदवाले, पुरुषवेदवाले, विभंगज्ञानवाले, चक्षुदर्शनवाले, पीतलेश्यावाले, पद्मलेश्यावाले और संज्ञो जीवोंके जानना चाहिए। ६३६७. मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यनी और सर्वार्थसिद्धिके देवोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी अपेक्षा असंख्यातभागहानि स्थितिविभक्तिवाले जीव संख्यात बहुभाग हैं। तथा शेष पद स्थितिविभक्तिवाले जीव संख्यातवें भाग हैं। इसी प्रकार अपगतवेदवाले, मनःपर्ययज्ञानवाले, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत और सूक्ष्मसांपरायिकसंयत जीवोंके जानना चाहिए। आनतकल्पसे लेकर अपराजित तकक देवोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी अपेक्षा असंख्यातभागहानि स्थितिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात बहुभाग हैं। तथा शेष पद स्थितिविभक्तिवाले जीव असंख्यातवें भागहैं। इसी प्रकार आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी,संयतासंयत, अवधिदर्शनवाले, शुक्ललेश्यावाले, सम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंके जानना चाहिए । आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगियोंमें भागाभाग नहीं है । इसी प्रकार अकषायी, यथाख्यातसंयत और सासादनसम्यग्दृष्टियोंके जानना चाहिए। इस प्रकार भागाभागानुगम समाप्त हुआ। ६३६८. परिमाणानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । उनमेंसे ओघकी अपेक्षा छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थित स्थितिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। तथा शेष पद स्थितिविभक्तिवाले जीव असंख्यात हैं। किन्तु इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातगुणहानि स्थितिविभक्तिवाले जीव संख्यात है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी सब पद स्थितिविभक्तिवाले जीव असंख्यात है। इसी प्रकार काययोगी, औदारिककाययोगी, नपुंसकवेदवाले, क्रोधादि चारों कषायवाले, अचक्षुदर्शनवाले भव्य और आहारक जीवोंके जानना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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