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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे (द्विदिविहत्ती ३ अंतोमुहुः । एवं माण-माया-लोमाणं पि वत्तव्वं । __ ३४४. णाणाणुवादेण मदिअण्णाणि-सुदअण्णा० मिच्छत्त०-सोलसक०-णवणोक० असंखेज्जभागवड्डि-अवढि० जह० एगस०, उक्क. एकत्तीससागरो० सादिरेयाणि । संखज्जभागवडि-संखज्जगुणवड्डी० जह० एगस०। णवरि इत्थि-पुरिस० संखज्जभागवड्ढो० जह० अंतोमु०। संखेज्जभागहाणि-संखेजगुणहाणी० ज० अंतोमु०, उक्क. सम्वेसि पि असंखेजपोग्गलपरियट्टा । असंखेजभागहाणी. जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमु० । सम्मत्त-सम्मामि० असंखेजभागहाणी. जहण्णुक० एगस० । संखेजभागहाणिकसंखेजगुणहाणी. जह० अंतोमु०, उक्क० दोण्हं पि पलिदो० असंवेजदिमागो। असंखेजगुणहाणी० णस्थि अंतरं । [एवं मिच्छादिट्ठीणं । विहंगणाणी० मिच्छत्त-सोलसक०-णव. णोक. असंखेजभागवटि-असंखेजभागहाणि-अवट्टि० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । संग्वेजमागड्डि संखेजगुणवड्डि-दोहाणीणं जहण्णुक्क० अंतोमु०। सम्मत्त-सम्मामि० असंखेजभागहाणी० जहण्णुक्क० एगस० । संखेजमागहाणि संखेजगुणहाणी० ज० अंतोमु०, उक्क पलिदो० असंखेजदिभागो। असंखेजगुणहाणो णस्थि अंतरं । ६३४५. आभिणि-सुद० ओहि मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक० असंखेजभागहाणी० जहण्णुक्क० एगस० । संखेजभागहाणि-संखेजगुणहाणी० जह० अंतोमु०, उक्क० गुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। इसी प्रकार मान, माया और लोभ कषायवाले जीवोंके भी जानना चाहिए। ६३४४. ज्ञानमार्गणाके अनुवादसे मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागवृद्धि और अवस्थितका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक इकतीस सागर है । संख्यातभागवृद्धि और संख्यातगुणवृद्धिका जघन्य अन्तर एक समय है। किन्तु इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद और पुरुपवेदकी संख्यातभागवृद्धिका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। तथा सभीका उत्कृष्ट अन्तर असंख्यातपुद्गलपरिवर्तन है। असंख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय है। संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और दोनोंका उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। असंख्यातगुणहानिका अन्तर नहीं है। इसी प्रकार मिथ्यादृष्टि जीवोंके जानना चाहिये। विभंगज्ञानियोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुह संख्यातभागवृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि और दो हानियोंका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहते है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय है। संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है । असंख्यातगुणहानिका अन्तर नहीं है। ६३४५. आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानियोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय है। संख्यात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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