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________________ गा० २२ 'वड्डिपरूवणाए अंतर २१३ तव्व० ज० अंतोमु०, उक्क० अद्धपोग्गलपरियट्ट देसूणं । सम्मत्त-सम्मामि० तिण्णिवड्डि. तिण्णिहाणि-अवष्टि० ज० अंतोमु०। असंखेज्जमागहाणी० ज० एगस० । असंखेज्जगुणवडि-अवत्तव्व० ज० पलिदो० असंखेज्जदिभागो। उक० सम्वेसिमुवड्डपोग्गलपरियढें । $३४२. अवगद० चउवीसपयडीणमसंखेज्जभागहाणीए जहण्णुक्क० एगस० । दंसणतिय-अट्ठकसाय-इत्थि-णवंसयवेदाणं संखेज्जभागहाणीए जहण्णुक्क० अंतोमुहुः । सेसाणं पयडीणमसंखेज्जमागहाणि-संखेज्जगुणहाणीणं जहण्णुक्क० अंतोमुहुत्तं ।। ६३४३. कसायाणुवादेण कोधकसाईसु मिच्छत्त-सोलसक०-णवणोक. असंखज्जभागवाड्डि-असंखज्जभागहाणि-अवढि० जह० एगस०, उक० अंतोमु० । संखज्जभागवड्डि. संखेज्जगुणवड्डी० जह० एगस०, उक्क० अंतोमुहु० । णवरि इत्थि-पुरिस० संखेज्जभागबड्डीए जहण्णंतरं अंतोमुहु०। संखज्जभागहाणि-संखेज्जगुणहाणि-असंखेज्जगुणहाणीणं जहण्णुक० अंतोमुहुत्तं । एगकसायुदयकालो दोवड्डि-तिण्णिहाणीणमंतरादो बहुओ ति कुदो णयदे ? कोधकसायोदएण खवगसेटिं चढाविय तदुदयकालब्भंतरे संखज्जसहस्सद्विदिकंडयपरूवयक्खवणसुत्तादो। अणंताणु० अवत्तव्य. णत्थि अंतरं। सम्मत्त-सम्मामि० चत्तारिवाड्डि-अवढि०-अवत्तव्व० णत्थि अंतरं। असंखेज्जभागहाणी० जह० एगस०, उक्क. अंतोमुहु० । संखेज्जभागहाणि-संखेज्जगुणहाणि-असंखेज्जगुणहाणी. जहण्णुक्क० उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्धपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थितका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त, असंख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय तथा असंख्यातगुणवृद्धि और अवक्तव्यका जघन्य अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है तथा सभीका उत्कृष्ट अन्तर उपाधपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है। ६३४२. अपगतवेदियोंमें चौबीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय है। तीन दर्शनमोहनीय, आठ कषाय, स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी संख्यातभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। शेष प्रकृतियोंकी संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है।। ३४३. कषायमार्गणाके अनुवादसे क्रोधकषायवाले जीवोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। संख्यातभागवृद्धि और संख्यातगुणवृद्धिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। किन्तु इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी संख्यातभागवृद्धिका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। तथा संख्यातभागहानि, संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। शंका-एक कषायका उदयकाल दो वृद्धि और तीन हानियोंके अन्तरसे अधिक है यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? • समाधान-क्रोधकषायके उदयसे क्षपकश्रेणी पर चढ़ाकर उसके उदयकालके भीतर संख्यात हजार स्थितिकाण्डकोंकी क्षपणाके प्ररूपण करनेवाले सूत्रसे जाना जाता है। अनन्तानुबन्धीचतुष्कके अवक्तव्यका अन्तर नहीं है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी चार वृद्धि, अवस्थित और अवक्तव्यका अन्तर नहीं है। असंख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। संख्यातभागहानि, संख्यातगुणहानि और असंख्यात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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