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________________ ranuaARArr. ... २१२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे . [हिदिविहत्ती ३ भागहाणि० जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमु० । दोवड्डि-दोहाणोणं जह० अंतोमु० । णवरि सत्तणोकसायाणं संखेज्जगुणवड्डीए जहण्णंतरमेगसमओ, उक्क० सव्वेसि पि तेवहिसागरोवमसदं तीहि पलिदोवमेहि सादिरेयं । णवरि संखेज्जभागहाणीए तेवद्विसागरोवमसदं पलिदो० असंखे०भागेण सादिरेयं । असंखेगुणहाणी० जहण्णुक्क० अंतोमु० । एवमणंताणु । णवरि असंखेज्जभागहाणी० जह० एगस०, उक्क० वेछावहिसागरो. देसूणाणि | असंखेज्जगुणहाणि-अवत्तव्व. जह० अंतोमु०, उक्क० सागरोवमसदपुधत्तं देसूणं । सम्मत्त-सम्मामि० तिण्णिवड्डि-तिण्णिहाणि-अवढि० ज० अंतोमु० । असंखेन्जभागहाणी० जह० एयस० । असंखेज्जगुणवड्डि-अवत्तव्ब० ज० पलिदो० असंखेज्जदिभागो। उक्क० सव्वेसि पि सागरोवमसदपुधत्तं देसूर्ण ।। ३४१. णqसयवेदेसु मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक० असंखज्जभागवड्डि-अवट्टि. जह० एगस०, उक० तेत्तीसं सागरो० देसूणाणि । असंखेज्जभागहाणी० जह० एगस०, उक० अंतोमु०। दोवड्डि-दोहाणी० ज० एगस० अंतोमु०। णवरि इल्थि-पुरिस० संखज्जभागवड्डी० अंतोमु०। उक० सव्वेसि पि अणंतकालमसंखज्जपोग्गलपरियढें । असंखेज्जगुणहाणी. जहण्णुक्क० अंतोमु० । एवमणंताणु० चउक० । णवरि असंखेज्जभागहाणी० ज० एगस०, उक्क० तेत्तीसं सागरो० देखणाणि। असंखेज्जगुणहाणि-अवहै। असंख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। दो वृद्धि और दो हानियोंका जघन्य अन्तर अतर्मुहूर्त है। किन्तु इतनी विशेषता है कि सात नोकषायोंकी संख्यातगुणवृद्धिका जघन्य अन्तर एक समय है। तथा सभीका उत्कृष्ट अन्तर तीन पल्य अधिक एकसौ त्रेसठ सागर है। किन्तु इतनी विशेषता है कि संख्यातभागहानिका उत्कृष्ट अन्तर पल्यका असंख्यातवाँ भाग अधिक एकसौ त्रेसठ सागर है। असंख्यातगुणहानि का जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । इसी प्रकार अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अपेक्षासे जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि असंख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एकसौ बत्तीस सागर है। असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम सौ सागरपृथक्त्व है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थितका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त, असंख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय तथा असंख्यातगुणवृद्धि और अवक्तव्यका जघन्य अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। तथा सभीका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम सौ सागर पृथक्त्व है। $३४१. नपुंसकवेदियोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागवृद्धि और अवस्थितका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है। असंख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है। दो वृद्धि और दो हानियोंका जघन्य अन्तर एक समय और अन्तर्मुहूर्त है। किन्तु इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी संख्यातभागवृद्धिका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है। तथा सभीका उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है। असंख्यातगुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । इसी प्रकार अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अपेक्षासे जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि असंख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है। असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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