SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 236
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गा० २२] वडिपरूवणाए अंतरं २१५ छावहिसागरो० देसूणाणि । णवरि बारसक०-णवणोक० संखेजभागहाणीए णवणउदि. सागरो० सादिरेयाणि । असंखेजगुणहाणीए जहण्णुक्क० अंतोमु०। एवमणंताणु०चउक० । णवरि संखेजमागहाणि-संखेजगुणहाणीणं मिच्छत्तभंगो। सम्मत्त-सम्मामि० असंखेजभागहाणी. जहण्णुक्क० एगस० । संखेजभागहाणि-संखेजगुणहाणी. जह० अंतोमु०, उक० छावट्टिसागरो० देसूणाणि । असंखज्जगुणहाणो० जहण्णुक० अंतोमु० । एवमोहिदसण-सम्मादिट्ठाणं ।। ६३४६. मणपज्ज० मिच्छत्त-बारसक-णवणोक० असंखेज्जभागहाणी. जहण्णुक० एगस० । संखेज्जमागहाणि-संखज्जगुणहाणी० ज० अंतोमु०, उक्क० पुषकोडी देसूणा। णवरि एदासि पयडीणं संखेज्जगुणहाणीए उक्क० अंतोमुहु। असंखेज्जगुणहाणीए संखज्जगुणहाणिभंगो। अणंताण चउक्क० असंखेजभागहाणा. जहण्णुक० एस० । संखेजभागहाणि-संखेजगुणहाणि-असंखेज्जगुणहाणीणं जहण्णुक्क० अंतोमु० । सम्मत्तसम्मामि० मिच्छत्तभंगो। ६३४७. संजमाणुवादेण संजद-सामाइय-छेदो०संजदाणं मणपजवभंगो। णवरि अणंताणु० चउक्क० संखेजभागहाणीए उक्कस्संतरं पुत्व कोडी देसूणा । कुदो! पढमसम्मत्तेण संजमं पडिवजनो मुहत्तभंतरे एयंताणुबड्डीए सव्वकम्माणं संखेजभागह णिं भागहानि और संख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम छयासठ सागर है। किन्तु इतनी विशेषता है कि बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी संख्यातभागहानिका साधिक निन्यानवे सागर है । असंख्यातगुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। इसी प्रकार अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अपेक्षा जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका भंग मिथ्यात्वके समान है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय है। संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम छयासठ सागर है। असंख्यातगुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूते है। इसी प्रकार अवधिदर्शनवाले और सम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिए । ६३४६. मनःपर्ययज्ञानियोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय है। संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक पूर्वकोटि है। किन्तु इतनी विशेषता है कि इन प्रकृतियोंकी संख्यातगुणहानिका उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। असंख्यातगुणहानिका भंग संख्यातगुणहानिके समान है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय । संख्यातभागहानि, संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग मिथ्यात्वके समान है। ३४७. संयम मार्गणाके अनुवादसे संयत, सामायिकसंयत और छेदोपस्थापनासंयत जीवोंका भंग मनःपर्ययज्ञानियोंके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी संख्यातभागहानिका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक पूर्वकोटि है, क्योंकि प्रथमोपशम सम्यक्त्वके साथ संयमको प्राप्त होनेवाले जीवके एक मुहूर्तकालके भीतर एकान्तानुवृद्धिके द्वारा सब कर्मोंकी संख्यात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy