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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [विदिविहत्ती ३ * जत्तियानो अस्सि समए हिदिविहत्तीओ उस्सकाविदे अणंतरविदिते समए अप्पदरानो बहुदरविहत्तिो एसो भुजगारविहत्तिो ।। २. 'अस्सि' समए अस्मिन् वर्तमानसमये 'जत्तियाओ' यावन्त्यः 'द्विदिविहत्तीओ' स्थितिविभक्तयः स्थितिविकल्पाः इति यावत् । 'उस्सकाविदे तासूत्कर्षितासु वद्धितासु इत्यर्थः। 'अणंतरविदिकते समए अनन्तरव्यतिक्रान्ते समये । अप्पदराओ अल्पतराः स्थितयो यदि भवन्ति । बहुदरविहत्तिओ स बहुतरस्थितिविकल्पो जीवः । एसो भुजगारविहत्तिओ । स एष जीवो भुजगारविभक्तिः। अणंतरादीदहिदीहिंतो जदि वट्टमाणसमए बहुआओ द्विदीओ बंधदि तो भुजगारविहत्तिओ ति भणिदं होदि।। * ओसक्काविदे पहुदराम्रो विहत्तीरो एसो अप्पदरविहत्तिो ! ____$ ३. 'बहुदराओ विहत्तीओ' अनन्तरव्यतिक्रान्ते समये बहुस्थितिविकल्पेषु व्यवस्थि. तेषु 'ओसक्काविदे' वर्तमानसमये स्थितिकांडघातेन अधास्थितिगलनेन वा अपकर्षितेषु । एसो अप्पदरविहत्तिओ एषः अन्पतरविभक्तिकः । ___* ओसक्काविदे [ उस्सकाविदे वा] तत्तियाओ चेव विहत्तीओ एसो अवठिदविहत्तिो । $ ४. ओसक्काविदे उस्सकाविदे वा जदि तत्तियाओ तत्तियागो चेव हिदिवंधवसेण * इस समयमें जितनी स्थितिविभक्तियां हैं उनके, अनन्तर व्यतीत हुए समयमें अल्पतर स्थितिविभक्तियोंको उत्कर्षित करके, बांधने पर वह बहुतरविभक्तिवाला जीव भुजगारस्थितिविभक्तिवाला होता है। ६२. 'अस्सिं समए' का अर्थ 'इस वर्तमान समयमें है। 'जात्तियाओ' का अर्थ 'जितनी' है। 'हिदिविहत्तीओ' का अर्थ स्थितिविभक्तियाँ अर्थात् स्थितिविकल्प है। 'उस्सक्काविदे' का अर्थ 'उनके उत्कर्षित करने पर अर्थात् बढ़ाने पर है। 'अणंतरविदिक्कते समए' का अर्थ 'अनन्तर व्यतीत हुए समयमें' है । 'अप्पदराओ'अर्थात् 'अल्पतर स्थितियाँ' यदि होती हैं । तो वह बहुदरविहत्तिओ' अर्थात् 'बहुत स्थितिविकल्पवाला जीव' है। एसो भुजगारविहत्तिओ' अर्थात् यह भुजगारविभक्तिवाला जीव है । इसका यह तात्पर्य है कि अनन्तर अतीत समयसे यदि वर्तमान समयमें जीव बहुत स्थितियोंका बन्ध करता है तो वह भुजगारविभक्तिवाला कहा जाता है। __* जो अनन्तर अतीत समयमें बहुतर स्थितिविभक्तियोंमें रहकर पुन: उन्हें अपकर्षित करके इस वर्तमान समयमें अल्पतर स्थितिविभक्तियोंको प्राप्त होगया वह जीव अल्पतर स्थितिविभक्तिवाला होता है। ६३. 'बहुदराओ विहत्तीओ' अर्थात् जो अनन्तर अतीत हुए समयमें बहुत स्थितिविकल्पोंमें रहा वह जब 'ओसक्काविदे' अर्थात् इस वर्तमान समयमें स्थितिकाण्डकघात या अधःस्थितिगलनाके द्वारा बहुत स्थितियोंको घटाकर अल्पतर स्थितिविभक्ति कर देता है तब वह जीव अल्पतर स्थितिविभक्तवाला होता है। ___ * अपकर्षित करने पर या उत्कर्षित करने पर यदि उतनी ही स्थितियां रहें तो वह जीव अवस्थितविभक्तिवाला होता है। $४. अपकर्षित करने पर या उत्कर्षित करने पर यदि स्थितिबन्धके कारण उतनी ही स्थिति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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