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१२४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[हिदिविहत्ती ३ बंधदि ताव संखेजगुणवड्डी चेव होदि । असंखेजगुणवड्डी मिच्छत्तस्स किण्ण होदि ? ण, धुवट्ठीदीए पलिदोवमस्स असंखेजदिभागपमाणत्तप्पसंगादो । ण च धुवद्विदी तत्तियमेत्ता अत्थि; तिस्से अंतोकोडाकोडिसागरोवमपमाणत्तादो। एसाधुवहिदी असंखेजस्वेहि गुणिदमेत्ता बंधेण किण्ण वड्ढदि ? ण, उक्कस्सहिदीए असंखेजसागरोवमपमाणत्तप्पसंगादो । ण च एवं तहोवदेसामावादो।
हुए उत्कृष्ट स्थितिके बन्ध तक संख्यातगुणवृद्धि ही होती है।
शंका-मिथ्यात्वकी असंख्यात गुणवृद्धि क्यों नहीं होती है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि मिथ्यात्वकी असंख्यातगुणवृद्धि मानने पर ध्रुवस्थिति पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण प्राप्त होती है । परन्तु ध्रुवस्थिति इतनी तो है नहीं, क्योंकि वह अन्त:कोड़ाकोड़ी सागरप्रमाण है।
शंका-इस ध्रुवस्थितिमें बन्धरूपसे असंख्यातगुणी वृद्धि क्यों नहीं होती है ?
समाधान नहीं, क्योंकि इसप्रकार वृद्धि मानने पर उत्कृष्ट स्थिति असंख्यात सागरप्रमाण हो जायगी। परन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि इस प्रकारका उपदेश नहीं पाया जाता है।
विशेषार्थ- यहाँ यह बतलाया है कि ध्रुवस्थितिके ऊपर एक समय, दो समय आदि स्थितियोंके बढ़ने पर कहाँ तक असंख्यातभागवृद्धि होती है, कहाँ से संख्यातभागवृद्धिका प्रारम्भ होता है और कहाँ से संख्यातगुणवृद्धि चालू होती है। जबतक स्थिति विवक्षित स्थितिके असंख्यातवें भाग प्रमाण तक बढ़ती है तब तक असंख्यातभागवृद्धि होती है। इसके आगे संख्यातभागवृद्धि होती है जो विवक्षित स्थितिके दूने होनेके पूर्वतक होती है। तथा जब विवक्षित स्थिति दूनी या इससे अधिक बढ़ती है तब संख्यातगुणवृद्धि होती है। विशेष खुलासा इस प्रकार है
ऐसा जीव लो जिसने पहले समय में ध्रुवस्थितिका बन्ध किया था। किन्तु दूसरे समयमें उसने ध्रवस्थितिसे एक समय अधिक ध्रुवस्थितिका बन्ध किया नो पिछले समयके बन्धसे यह बन्ध असंख्यातवें भाग अधिक हुआ। अतः यहाँ असंख्यातभागवृद्धि हुई। यहाँ भागहारका प्रमाण ध्रुवस्थिति है; क्योंकि ध्रुवस्थितिका ध्रुवस्थितिमें भाग देनेपर एक प्राप्त होता है। अब एक ऐसा जीव लो जिसने पिछले समयमें ध्रुवस्थितिका बन्ध किया और अगले समयमें दो समय अधिक ध्रुवस्थितिका बन्ध किया तो पिछले समयके बन्धसे यह बन्ध भी असंख्यातवें भाग अधिक हुआ, क्योंकि दो यह ध्रुवस्थितिके असंख्यातवें भाग प्रमाण है, अतः यहाँ असंख्यातभागवृद्धि हुई। यहाँ दोके प्राप्त करनेके लिये भागहारका प्रमाण ध्रुवस्थितिका आधा हो जाता है। अब एक ऐसा जीव लो जिसने पिछले समयमें ध्रवस्थितिका बन्ध किया और अगले समयमें तीन समय अधिक ध्रुवस्थितिका बन्ध किया तो पिछले समयके बन्धसे यह बन्ध भी असंख्यातवें भाग अधिक हुश्रा; क्योंकि तीन यह संख्या भी ध्रुवस्थितिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अतः यहाँ भी असंख्यात. भागवृद्धि हुई। यहाँ वृद्धिरूप अंक तीनके प्राप्त करनेके लिये भागहारका प्रमाण ध्रुवस्थितिका तीसरा भाग हो जाता है। इसी प्रकार पिछले समयमें ध्रुवस्थितिका तथा अगले समयमें चार, पाँच समय आदि अधिक ध्रुवस्थितिका बन्ध कराने पर भी असंख्यातभागवृद्धि ही होती है, क्योंकि यहाँ
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