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________________ ११२ जयधवलासहिदेकसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ तं जहा–कसाएसु उकस्सद्विदि बंधमाणेसु णqसयवेदअरदिसोगभयदुगुंछोणं णियमेष बंधो होदि। होंतो वि एदासि पयडोणं द्विदिबंधो उकस्सेण वीसंसागरोवमकोडाकोडिमेत्तो होदि । जहण्णेण समयणाबाहाकंड एणणवीसंसागरोवमकोडाकोडिमेत्तो; एत्थ उक्कस्सव ड्डि-अवट्ठाणेहिं अहियारत्तादो। एगावाहाकंडएणूणवीसंसागरोवमकोडाकोडि मेत्तहिदि पंच णोकसाया बंधावेदव्वा । एवं बंधिय पुणो बंधावलियादिकंतकसायद्विदीए पंचणोकसाएसु संकंताए पलिदोवमस्स असंखे०भागेणब्महियवीसंसागरोवमकोडाकोडिमेत्ता वड्डी अबढाणं च होदि तेणेसा थोवा । * उक्कस्सिया हाणी विसेसाहिया ।। ६२०९. कुदो ? हेट्ठा अंतोकोडाकोडिं मोत्तूण उवरिम-किंचूणचालीससागरोवमकोडाकोडिमेतहिदीणं कंडयघादेण घावलंभादो। केत्तियमेत्तेण विसेसाहिया ? अंतो. कोडाकोडीए ऊणवीसंसागरोवमकोडाकोडिमेत्तेण । इत्थिपुरिसहस्सरदीणमेस कमो पत्थि; उक्कस्सट्ठिदिबंधकाले तासि बंधामावादो। पडिहग्गद्धाए अंतोकोडाकोडिमेत्तहिदि बंधमाणचदुणोकसायाणमुवरि बंधावलियादिकंतकसायुक्कस्सहिदीए संकंतिसंभवादो। * सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं सव्वत्थोवमुक्कस्समवहाणं । २१०. कुदो ? एगसमयत्तादो। अधिक बीस कोड़ाकोड़ी सागर है। खुलासा इस प्रकार है-कषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध होते हुए नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय और जगुप्साका नियमसे बन्ध होता है। बन्ध होता हुआ भी इन प्रकतियोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध वीस कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण होता है और जघन्य स्थिति वन्ध एक समयकम एक आवाधाकाण्डकसे न्यून बीस कोड़ाकोड़ी सागरप्रमाण होता है। प्रकृतमें उत्कृष्ट वृद्धि और अवस्थानका अधिकार है अतः पांच नोकषायोंका स्थितिबन्ध एक बाधाकाण्डक कम बीस कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण कराना चाहिये । इस प्रकार बन्ध कराके पुनः बन्धावलिसे रहित कषायकी स्थितिके पाँच नोकषायोंमें संक्रान्त कराने पर चूकि पल्योपमके असंख्यातवें भागसे अधिक बीस कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण वृद्धि और अवस्थान होता है इसलिये यह थोड़ी है। * उत्कष्ट हानि विशेष अधिक है। ६२०९. क्योंकि नीचे अन्तःकोड़ाकीड़ी प्रमाण स्थितिको छोड़कर कुछ कम चालीस कोड़ा. कोड़ी प्रमाण उपरिम स्थितियोंका काण्डकघातके द्वारा घात पाया जाता है। शंका-कितनी अधिक है ? समाधान-अन्तःकोड़ाकोड़ी कम बीस कोड़ाकोड़ी सागर अधिक है। किन्तु स्त्रीवेद, पुरुषवेद, हास्य और रतिका यह क्रम नहीं है, क्योंकि उस्कृष्ट स्थिति बन्धके समय इन प्रकृतियोंका बन्ध नहीं होता है। अतः प्रतिभग्नकालके भीतर अन्तःकोड़ाकोड़ी प्रमाण स्थितिको लेकर बंधनेवाली चार नोकषायोंके ऊपर बन्धावलिसे रहित कषायकी उत्कृष्ट स्थितिका संक्रमण देखा जाता है। * सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट अवस्थान सबसे थोड़ा है। ६२१०. क्योंकि उसका प्रमाण एक समय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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