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________________ १०८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ कस्स० १ अण्णदरस्स वेदगसम्मत्तपाओग्गजहण्णढिदिसंतकम्मियमिच्छादिट्टिणा मिच्छत्तुकस्सहिदि बंधिदण हिदिघादमकाऊण अंतोमुहुत्तेण सम्मत्ते पडिवण्णे तस्स पढमसमयवेदगसम्मादिहिस्स उक्क० वड्डी । उक० हाणी कस्स० १ अण्णद० उक्कस्सहिदिसंतकम्मम्मि उकस्सद्विदिकंडगे हदे तस्स उकस्सहाणी । उक्क० अवट्ठाणं कस्स० १ अण्णद० जो सम्मत्तहिदिसंतादो समयुत्तरमिच्छत्तहिदिसंतकम्मिओ तेण समत्ते पडिवण्णे तस्स पढमसमयसम्मादिद्विस्स उक्कस्समवट्ठाणं । एवं चदुसु गदीसु । णवरि पंचिंतिरि० अपज.. मणुसअपज० छन्वीसपयडीणमुक्क० वड्डी कस्स० १ अण्णद० तप्पाओग्गजहण्णहिदिसंतकम्मिएण तप्पाओग्गउकस्सद्विदीए पबद्धाए तस्स उक्कस्सिया वड्डी । तस्सेव से काले उकस्समवट्ठाणं । उक्क० हाणी कस्स० ? अण्णदरस्स मणुस्सो मणुस्सिणी पंचिंदियतिरिक्खजोणिओ वा उकस्सहिदि घादयमाणो अपजत्तएसु उववण्णो तेण उक्कत्सटिदिकंडए हदे तस्स उक० हाणी। सम्मत्त०-सम्मामि० उक० हाणी कस्स ? अण्णद० मणुस्सो मणुस्सिणी पंचिंतिरि०जोणिणीओ वा सम्मत्त०-सम्मामि० उक्कस्सद्विदिकंडयं घादयमाणो अपजत्तएसुववण्णो तेण उक्कस्सद्विदिकंडए हदे तस्स उक्क० हाणी । २००. आणदादि जाव उवरिमगेवजो त्ति छव्वीसं पयडीणमुक्क०हाणी कस्स ? अण्णद० पढमसम्मत्ताहिमुहेण पढमट्टिदिखंडए हदे तस्स उक० हाणी। सम्मत्तसम्मामि० उक० वड्डी कस्स ? अण्णद० जो वेदगसम्मत्तप्पाओग्गसम्मत्तजहण्णद्विदि वृद्धि किसके होती है ? वेदकसम्यक्त्वके योग्य जघन्य स्थितिसत्कर्मवाले जिस मिथ्यादृष्टि जीवने मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करके और स्थितिघात न करके अन्तर्मुहूर्तकालमें सम्यक्त्वको प्राप्त किया उस वेदकसम्यग्दृष्टिके प्रथम समयमें उत्कृष्ट वृद्धि होती है। उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? उत्कृष्ट स्थिति सत्कर्मके रहते हुए जिस जीवने उस्कृष्ट स्थितिकाण्डकका घात किया उसके उत्कृष्ट हानि होती है । उत्कृष्ट अवस्थान किसके होता है ? सम्यक्त्वके स्थितिसत्कर्मसे मिथ्यात्वकी एक समय अधिक स्थितिसत्कर्मवाला जो जीव सम्यक्त्वको प्राप्त होता है उस सम्यग्दृष्टिके प्रथम समयमें उत्कृष्ट अवस्थान होता है। इसी प्रकार चारों गतियों में जानना चाहिए । किन्तु इतनी विशेषता है कि पंचेन्द्रिय तियश्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्त जीवोंमें छब्बीस प्रकृतियोंको उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? तत्प्रायोग्य जघन्य स्थितिसत्कर्मवाले जिस जीवने तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट स्थितिका बग्ध किया उसके उत्कृष्ट वृद्धि होती है। तथा उसीके तदनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थान होता है। उस्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो मनुष्य, मनुष्यनी या पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिवाला जीव उत्कृष्ट स्थिति. का घात करता हुमा अपर्याप्तकोंमें उत्पन्न हुआ और वहाँ उसने उत्कृष्ट स्थितिकाण्डकका घात किया उसके उत्कृष्ट हानि होती है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो मनुष्य, मनुष्यनी या पंचेन्द्रिय तियच योनिवाला जीव सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यास्वका घात करता हुआ अपर्याप्तकोंमें उत्पन्न हुआ और वहाँ उसने उत्कृष्ट स्थितिकाण्डकका घात किया उसके उत्कृष्ट हानि होती है। ६२००. आनतकल्पसे लेकर उपरिम अवेयकतकके देवोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? प्रथम सम्यक्त्वके अभिमुख जिस जीवने प्रथम स्थितिकाण्डकका घात कर दिया है उसके उत्कृष्ट हानि होती है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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