SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ अपच्चक्खाणकोह० जो अप्प०विहत्तिओ तस्स मिच्छत्त०-सम्मत्त०-सम्मामि० सिया अस्थि । जदि अस्थि णियमा अप्प०विहत्तिओ। एक्कारसक०-णवणोकसायाणं णियमा अप्प०विहत्तिओ। एवमेक्कारसक०-णवणोकसायाणं । णवरि चदुसंजल०-सत्तणोक० सण्णियासविसेसो जाणियव्यो । अकसा०-सुहुम०-जहाक्खाद० अवगद०भंगो । १७६. खइयसम्मादिट्ठी जो अपञ्चक्खाणकोध० अप्प०विहत्तिओ सो एकारसक०-णवणोक. णियमाअप्प०विहत्तिओ। एवमेक्कारसक०-णवणोकसायाणं । [णवरि विसेसो जाणियव्वो।] उवसम० मिच्छत्तस्स जो अप्पदरविहत्तिओ सो सम्मत्त-सम्मामि०बारसक०-णवणोक० णियमा अप्पद विहत्तिओ। अणंताणु०चउक्क० सिया अस्थि । जदि अस्थि णियमा अप्प०विहत्तिओ। एवं सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं । अणंताणु०कोध० जो अप्प. विहत्तिओ सो सेससत्तावीसं पयडी० णियमा अप्प०विहत्तिओ। एवमणंताणु०माण-माया. लोहाणं । अपचक्खाण कोध० अप्प० जो विहत्तिओ सो मिच्छ० सम्म०-सम्मामि०. एकारसक०-णवणोक० अप्प० णियमा विहत्तिओ। अणंताणु०चउक्क० सिया अस्थि । जदि अत्थि णियमा अप्प०विहत्तिओ। एवमेकारसक०-णवणोकसायाणं। एवं सम्मामि० । सासण. जो मिच्छत्तस्स अप्पदरविहत्तिओ सो सेससत्तावीसपयडीणं प्रकार सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अपेक्षा जानना चाहिए। अप्रत्याख्यानावरण क्रोधकी जो अल्पतर स्थितिविभक्तिवाला है उसके मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व कदाचित् हैं। यदि हैं तो उनकी अपेक्षा नियमसे अल्पतर स्थितिविभक्तिवाला है। तथा ग्यारह कषाय और नौ नोकषायोंकी अपेक्षा नियमसे अल्पतर स्थितिविभक्तिवाला है। इसी प्रकार ग्यारह कषाय और नौ नोकषायोंकी अपेक्षा जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि चार संज्वलन और सात नोकषा योंका सन्निकर्षविशेष जानना चाहिये। अकषायी, सूक्ष्मसांपरायिकसंयत और यथाख्यातसंयतोंके अवगतवेदियोंके समान भंग है। ६१७६. क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंमें जो अप्रत्याख्यानावरण क्रोधकी अल्पतर स्थितिविभक्तिवाला है वह ग्यारह कषाय और नौ नोकषायोंकी नियमसे अल्पतर स्थितिविभक्तिवाला है। इसी प्रकार ग्यारह कषाय और नौ नोकषायोंकी अपेक्षा जानना चाहिए । परन्तु चार संज्वलन और सात नोकषायोंका सन्निकर्ष विशेष जानना चाहिये। उपशमसम्यग्दृष्टियोंमें जो मिथ्यात्वकी अल्पतर स्थितिविभक्तिवाला है वह सम्यक्त्व, सम्याग्मथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी नियमसे अल्पतर स्थितिविभक्तिवाला है। अनन्तानुबन्धीचतुष्क कदाचित् हैं। यदि हैं तो उनकी अपेक्षा नियमसे अल्पतर स्थितिविभक्तिवाला है । इसीप्रकार सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अपेक्षा जानना चाहिए। अनन्तानुबन्धी क्रोधकी जो अल्पतर स्थितिविभक्तिवाला है वह शेष सत्ताईस प्रकृतियोंकी नियमसे अल्पतर स्थितिविभक्तिवाला है। इसीप्रकार अनन्तानुबन्धी मान, माया और लोभकी अपेक्षा जानना चाहिए। अप्रत्याख्यानावरण क्रोधकी जो अल्पतर स्थितिविभक्तिवाला है वह मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मि थ्यात्व, ग्यारह कषाय और नौ नोकषायोंकी नियमसे अल्पतर स्थितिविभक्तिवाला है। अनन्तानुबन्धी चतुष्क कदाचित् हैं और कदाचित् नहीं हैं। यदि हैं तो इनकी अपेक्षा नियमसे अल्पतरस्थितिविभक्तिवाला है। इसीप्रकार ग्यारह कषाय और नौ नोकषायोंकी अपेक्षा जानना चाहिए। इसीप्रकार सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके जानना चाहिए । सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंमें जो मिथ्यात्वकी अल्पतर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy