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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ ६१६१. उवसम० सव्वपयडी० अप्पदर० ज० एगस०, उक्क० चउवीस अहोरत्ते सादिरेगे। सासण-सम्मामि० सव्वपयडि. अप्प० ज० एगस०, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो। एवमंतराणुगमो समत्तो। १६२. भावाणुगमेण दुविहो णिद्देसो-ओघे० आदेसे० । ओघेण' सव्वपयडिसव्वपदाणं को भावो ? ओदइओ भावो। ण उवसंतकसायअप्पदरेण वियहिचारो, तत्थ वि . .. नोकषायका भङ्ग अकषायी जीवोंके समान है। अभव्य जीवोंमें छब्बीस प्रकृतियोंका भङ्ग मत्यज्ञानी जीवोंके समान है। विशेषार्थ-अवगतवेदमें मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और आठ कषायोंकी अल्पतर स्थितिविभक्तिका अन्तरकाल उपशम श्रेणिमें ही प्राप्त होता है । तथा उपशमश्रेणिका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षपृथक्त्व है। इसलिये अवगतवेदमें उक्त प्रकृतियोंका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल उक्तप्रमाण बतलाया है। आठ नोकषायोंका अन्तरकाल क्षपकश्रेणिमें भी बन जाता है पर यह यथासम्भव नपुंकवेद और स्त्रीवेदकी अपेक्षा क्षपकश्रेणि पर चढ़ हुए अपगतवेदी जीवोंके ही प्राप्त होता है। पर क्षपकणिकी अपेक्षा ऐसे अपगतवेदियोंका वही अन्तरकाल है जो उपशमश्रेणिका पूर्वमें बतलाया है। इसलिये आठ नोकषायों के अल्पतर पदका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल उक्तप्रमाण कहा है। अब रहा पुरुषवेद और चार संज्वलनोंका अल्पतरपद सो यह पुरुषवेदसे अपगतवेदी हुए जीवोंके भी होता है। तथा क्षपकणिकी अपेक्षा ऐसे जीवोंका उत्कृष्ट अन्तरकाल छह महीनासे अधिक नहीं है। अतः उक्त प्रकृतियों के अल्पतर पदका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल छह महीना बतलाया है। सूक्ष्मसम्पराय संयममें लोभ संज्वलनका सत्त्व क्षपकश्रेणिमें भी है, अतः इसका अन्तरकाल अपगतवेदियों के समान बतलाया। किन्तु शेष प्रकृतियोंका सत्त्व उपशमश्रेणिमें ही होता है, इसलिये इनका अन्तरकाल अकषाथियोंके समान बतलाया है। ६१६१. उपशमसम्यग्दृष्टियोंमें सब प्रकृतियोंकी अल्पतर स्थितिविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिन रात है। सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिध्यादृष्टियोंमें सब प्रकृतियोंकी अल्पतर स्थितिविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। विशेषार्थ-उपशम सम्यक्त्वका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल चौबीस दिन रात है, इसलिये इनमें सब प्रकृतियोंके अल्पतर पदका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उस्कृष्ट अन्तरकाल साधिक चौबीस दिन रात बतलाया है । सासादन सम्यक्त्वका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण बतलाया है। यही कारण है कि इसमें सब प्रकृतियोंके अल्पतर पदका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल उक्तप्रमाण कहा है। ___ इस प्रकार अन्तरानुगम समाप्त हुआ। ६ १६२. भावानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश। ओघसे सब प्रकृतियोंके सब पदोंका कौन भाव है ? औदायिक भाव है। यदि कहा जाय कि इस १ ता०प्रतौ 'ओघेण' इति पाठो नास्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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