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________________ ५२१ गा० २२ ] हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिहिदिविहत्तियसरिणयासो णवणोक० किं ज० अज० १ णि० जहण्णा । सम्मत्त०-सम्मामि० मदिअण्णाणिभंगो। एवं सोलसक० णवणोकसायाणं । सम्मत्त० जह० विह० मिच्छत्त०-सोलसक०-णवणोक० किं ज० [अज०] ? अज० । तं तु तिहाणपदिदा । सम्मामि किं ज० अज०१ णि. अज० असंखे गुणा । एवं सम्मामि० ? णवरि सम्मत्तं गत्थि । ६८६५. आभिणि-सुद०-श्रोहि० ओघभंगो। णवरि सम्मामिच्छत्तस्स क्खवणाए जहण्णहिदी कायव्वा । एवं संजद०-मणपज्ज०-सामाइय-छेदो०-ओहिदस०सम्मादिहीणं । णवरि मणपज्ज० इत्थि-णवूस सामिणो जाणिदव्वा । सामाइय-छेदो. तिण्णिसंज०-णवणोक०ज० वि० लोभसंज० कि ज. अज० ?णि० अजह० संखेगुणा । ८६६ परिहार० मिच्छत्त००वि० सम्मत्तसम्मामि० किं ज० अज० १ णि. अज० असंखे०गुणा । बारसक-णवणोक० किं ज. अज० १ णि अज० संखेगुणा। सम्मत्त०ज०वि० बारसक-णवणोक० किं ज. अज० १ णि० अज० वेढाणपदिदा । सम्मामि०ज०वि० सम्मत्त० किं ज० अज० ? णि० अज० असंखेगुणा । सेस. धारक जीवके सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होती है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग मत्यज्ञानियोंके समान है। इसी प्रकार सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवोंके सन्निकर्ष जानना चाहिये । सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? अजघन्य होती है जो तीन स्थानपतित होती है। सम्यग्मिथ्यात्वकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है जो जघन्य स्थितिसे असंख्यातगुणी होती है। इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि इसके सम्यक्त्वप्रकृति नहीं है। ८६५ आभिनिबोधक ज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंका भंग ओघके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि इनके सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थिति क्षपणाके समय ही कहनी चाहिये। इसी प्रकार संयत, मनःपर्ययज्ञानी, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, अवधिदर्शनी और सम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिये। किन्तु इतनी विशेषता है कि मनःपर्ययज्ञानियोंमें स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके स्वामीको जानकर कहना चाहिये । सामायिकसंयत और छेदोपस्थापनासंयतोंमें तीन संज्वलन और नौ नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंके लोभसंज्वलनकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है जो अपनी जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणी होती है। १८६६. परिहार विशुद्धिसंयतोंमें मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है जो जघन्य स्थितिसे असंख्यातगुणो होती है। बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है जो जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणी होती है । सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य १ नियमसे अजघन्य होती है जो दो स्थानपतित होती है। सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके सम्यक्त्वकी स्थिति क्या जघन्य होती है या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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