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________________ जयघवलासहिदे कसायपाहुडे [३ ९८६२. कसायाणुवादेण कोध० पंचिदियभंगो । णवरि कोध० ज०वि० तिण्णिसंज० किं ज० ज० १ णि० जहण्णा । एवं तिन्हं संजलणाणं । एवं माण० । णवरि दोण्णि० संजल० णि० जहण्णा १ एवं माय० । णवरि एगसंज० णियमा जहण्णा । ९ ८६३ अकसा० मिच्छत्तज० वि० सम्मत्त सम्मामि० किं ज० अ० १ णि० जहण्णा । बारसक० णवणोक ० किं ज० अज० १ णि० ज० संखे० गुणा । एवं सम्मत्त - सम्मामिच्छत्ताणं । अपच्चक्खाणकोधन० वि० एक्कारसक० णवणोक० किं ज० ज० १ णि० जहण्णा । एवमेक्कारसक० णवणोकसायाणं । एवं सुहुमसांपराय-जहाक्वादाणं । णवरि सुहृम० लोभसंज० जह० वि० सेसं णत्थि । सेस० जह० लोभसंज० णिय० ज० संखे ० गुणा | ० १८६४. णाणाणुवादेण मदिसुअण्णा तिरिक्खोघं । णवरि अणंतागु० चउक० मिच्छत्तभंगो । सम्मत्त • सम्मामिच्छत्तभंगो । एवमभवसि० मिच्छायिहि० असण्णी० । वरि अभवसिद्धिएसु सम्मत्त ० सम्मामि० णत्थि । विहंग० मिच्छत्त ज० वि० सोलसक० ५२० ९ ८६२. कषाय मार्गणा के अनुवाद से क्रोधी जीवका पंचेन्द्रियोंके समान भंग है । किन्तु इतनी विशेषता है कि क्रोध की जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके तीन संज्वलनोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होती है । इसी प्रकार मान आदि तीन संज्वलनोंकी जघन्य स्थिति विभक्तिवाले जीवोंके सन्निकर्षं जानना चाहिये। इसी प्रकार मानी जीवके जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि इसके माया आदि दो संज्वलनों की स्थिति नियमसे जघन्य होती है । इसी प्रकार मायी जीवके जानना चाहिये। किन्तु इतनी विशेषता है कि इसके लोभ संज्वलन की स्थिति नियमसे जघन्य होती है । I § ९ ८६३. कषायरहित जीवोंमें मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व की स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होती है । बारह कषाय और नौ नोकषायों की स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो जघन्य स्थिति से संख्यातगुणी होती है । इसी प्रकार सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवोंके जानना चाहिये । अप्रत्याख्यानावरण क्रोधकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके शेष ग्यारह कषाय और नौ नोकषायों की स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होती है । इसी प्रकार शेष ग्यारह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवोंके सन्निकर्ष जानना चाहिये। इसी प्रकार सूक्ष्म सांपरायिक संयत और यथाख्यातसंयत जीवों के जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि सूक्ष्म सांपराय • गुणस्थान में लोभ संज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके शेष प्रकृतियाँ नहीं हैं। तथा शेष प्रकृतियों की जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके लोभसंज्वलनकी स्थिति नियमसे अजघन्य होती है जो जघन्य स्थिति से असंख्यातगुणी होती है । ९८६४. ज्ञान मार्ग के अनुवाद से मत्यज्ञानी जीवोंमें सामान्य तिर्यंचों के समान कथन जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि अनन्तानुबन्धी चतुष्कका भंग मिथ्यात्वके समान है तथा सम्यक्त्वका भंग सम्यग्मिथ्यात्व के समान है । इसी प्रकार अभव्य, मिध्यादृष्टि और असंज्ञी जीवों के जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि अभव्य जीवोंके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व ये दो प्रकृतियां नहीं हैं । विभंग ज्ञानियोंमें मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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