SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 541
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ પ૨૨ जषधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ सम्मत्तभंगो । अणताणु०कोध० जह० दंसणतिय-तिण्णिकसा० ओघं । सेसं मिच्छत्तभंगो । एवं तिहं कसायाणं । अपच्चक्खाणकोध० ज० वि० एक्कारसक०-णवणोक० किं ज. अज० १ णि० जहण्णा । एवमेक्कारसक० णवणोकसायाणं । एवं संजदासंजदाणं । ६.८६७. असंजद० मिच्छत्त० ज० वि० सम्मत्त०-सम्मामि० किं ज० अज०। णि. अज० असंखे गुणा । बारसक०-णवणोक० किं ज० अज० १ णि० अज० संखे०गुणा । सम्मत्त० ज० वि० बारसक०-णवणोक० कि० ज० अज.? णियमा अज० संखेज्जगुणा। सम्मामि० ज० वि० सम्मत्त-अणंताणु०चउक्क० सिया अस्थि सिया पत्थि । जदि अत्थि णि असंखे०गुणा । बारसक० णवणोक० किं ज० अज० १ जहण्णा अजहण्णा वा । जहण्णादो अज० तिहाणपदिदा । सेसं तिरिक्खोघं । णवरि मिच्छत्त० अर्णताणु० चउक्कभंगो। ६८६८. किण्ह-णील-काउ० तिरिक्खोघं । गवरि किण्ह-णीललेस्सासु सम्मत्त०सम्मामिच्छत्तभंगो । तेउ०-पम्मपरिहार भंगो । णवरि सम्मामि० ओघं । अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है जो जघन्य स्थितिसे असंख्यातगुणी होती है। शेष प्रकृतियोंका भंग सम्यक्त्वके समान है। अनन्तानुबन्धी क्रोधकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके तीन दर्शन मोहनीय और अनन्तानुबन्धी मान आदि तीन कषायोंका कथन ओघके समान है । तथा शेष प्रकृतियोंका भंग मिथ्यात्वके समान है। इसी प्रकार अनन्तानुबन्धी मान आदि तीन कषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंके सन्निकर्ष जानना चाहिये। अप्रत्याख्यानावरण क्रोधकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके शेष ग्यारह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होती है। इसी प्रकार शेष ग्यारह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंके सन्निकर्ण जानना चाहिये । इसी प्रकार संयतासंयतोंके जानना चाहिये । १८६७. असंयतोंमें मिथ्याश्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है जो जघन्य स्थितिसे असंख्यातगुणी होती है। सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणी होती है। सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके सम्यक्त्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्क कदाचित् हैं और कदाचित् नहीं हैं। यदि हैं तो उनकी स्थिति नियमसे अजघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थितिसे असंख्यातगुणी होती है। बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? जघन्य भी होती है और अजघन्य भी। उनमेंसे अजघन्य स्थिति जघन्य स्थितिसे तीन स्थान पतित होती है। शेष कथन सामान्य तियंचोंके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वका भंग अनन्तानुबन्धी चतुष्कके समान है। ८६८. कुष्ण नील और कापोत लेश्यावालोंके सामान्य तिर्यंचोंके समान जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि कृष्ण और नील लेश्याओंमें सम्यक्त्वका भंग सम्यग्मिथ्यात्वके समान है। पीत और पद्मलेश्यावालोंमें परिहार विशुद्धिसंयतोंके समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि सम्यग्मिथ्यात्वका भंग ओघके समान है। Jain Education International For Private & Personal Use Only . www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy