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________________ गा० २२ ] हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिडिदिविहत्तियसरिणयासो ५१७ । जह हिदिवि० मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक० किं ज० अज० १ णि० अज. संखे०गुणा । तिणि कसाय० णियमा जहण्णा । एवं तिहं कसायाणं । इत्थि० ज० विह०मिच्छत्त-सोलसक०-अहणोक० किं ज. अज० ? णि• अज० संखे०गुणा । सम्मत्तसम्मामि० सिया अत्थि सिया णत्थि । जइ अस्थि किं ज. अज० ? जहण्णा अजहएणा वा । जहण्णादो अजहण्णा वेहाणपदिदा संखे०गुणा असंखे०गुणा वा । वरि सम्म० ज० णत्थि । एवं पुरिस० । णवुस० ज० वि० मिच्छत्त०-सोलसक०-छण्णोक० किं ज० अज० १णि अज० संखे०गणा। सम्मत्त-सम्मामि० इत्थिभंगो। हस्स-रदि० किं ज० अज० १ णि अज० विहाणपदिदा असंखे०भागब्भहिया संखे० गुणा वा । हस्स० जह० विह. मिच्छत्त-सोलसक०-पंचणोक० किं ज० अज० ? णि० अज० संखे गुणा। सम्मत्त-सम्मामि० इत्थिभंगो। इत्थि-पुरिस० किं ज० अज. ? णि० अज० विहाणपदिदा असंखे भाग०भहिया संखे०गुणा वा। रदि० किं ज. अज. ? णि० ज० । एवं रदीए । एवं चेव अरदि-सोगाणं । णवरि णवूस० वेढाणपदिदा । धारक जावक मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नाकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होता ह या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है । जो अपनी जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणी होती है। (सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग मिथ्यात्वके समान जानना)। तथा अनन्तानुबन्धीमान आदि तीन कषायोंकी स्थिति नियमसे जघन्य होती है। इसी प्रकार अनन्तानुबन्धा मान आदि तान कषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये । स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके मिथ्यात्व, सोलह कषाय और आठ नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणी होती है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व कदाचित् हैं और कदाचित् नहीं हैं। यदि हैं तो उनकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? जघन्य भी होती है और अजघन्य भा । उनमेंसे अजघन्य स्थिति अपनी जघन्य स्थितिकी अपेक्षा संख्यातगुणी अधिक या असंख्यातगुणी अधिक इस प्रकार दो स्थान पतित होती है। किन्तु विशेषता इतनी है कि इसके सम्यक्त्वकी जघन्य स्थिति नहीं होती है। इसी प्रकार पुरुषवेदा जावके सन्निकष जानना चाहिये । नपुंसकवेदकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवक मिथ्यात्व, सालह कषाय और छह नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होता है। जो अपनी जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणी होती है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग स्त्रीवेद के समान है। हास्य और रतिको स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थितिसे असंख्यातवें भाग अधिक या संख्यातगुणी अधिक इस प्रकार दो स्थान पतित होती है । हास्यकी जघन्य स्थितिविभक्तिक धारक जीवके मिथ्यात्व, सोलह कषाय और पांच नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होता हे या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणा होती है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग स्त्रीवेदीके समान है । स्त्रीवेद और पुरुषवेदका स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थितिसे असंख्यातवें भाग अधिक या संख्यातगुणी अधिक इस प्रकार दो स्थान पतित होती है। रतिकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होती है। इसी प्रकार रतिकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये। तथा इसी प्रकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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