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________________ येधवलासहिदे कसायपाहुडे [द्विदिविहत्ती ३ णि० जह० । एवं तिण्हं कसायाणं । अपच्चक्खाणकोधज० विहत्ति० एक्कारसक०णवणोक• कि ज० अज० १ णि. जहण्णा । एवमेक्कारसक०-णवणोकसायाणं । ८५८ वेउव्वियमिस्स० मिच्छत्त० ज०विह० बारसक०-णवणोक० किं ज. अज० ? णि. अज० सं०गुणा । सम्मत्त-सम्मामि० किं ज० अज० १ णि० अज. असंखे० गुणा । सम्मत्तज विह. बारसक०-णवणोक० किं ज. अज० ? णि. अज. विहाणपदिदा असंखे०भागब्भहिया संखे गुणा वा। सम्मामि० ज० वि० मिच्छत्त-सोलसक०-भय-दुगुंछ० किं० ज० अज० ? णि० अज० संखे०गुणा । सत्तणोक० किं ज. अज० ? जहण्णा अजहण्णा वा जहण्णादो अजहण्णा तिहाणपदिदा असंखे०भागब्भहिया संखे० भागब्भ० संखे गुणा वा। अपच्चक्खाणकोध० ज० वि० एकारसक०-भय-दुगुछ० किं ज० अज० १ णि जहण्णा । सत्तणोक० किं ज० अज० १ णि० अज० संखेगुणा। एवमेकारसकसाय-भय-दुगुंछाणं । अणंताणु० कोध० जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होती है। इसी प्रकार अनन्तानुबन्धी मान आदि तीन कषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये। अप्रत्याख्यानावरण क्रोधकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके अप्रत्याख्यानावरण मान आदि ग्यारह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होती हैं। इसी प्रकार अप्रत्याख्यानावरण मान आदि ग्यारह कवाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये । ६८५८वैक्रियिकमिश्रकाययोगियों में मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणी है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य हाती है। जो जघन्य स्थितिसे असंख्यातगुणी होती है। सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके बारह कषाय और नौ नोकषायांकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो असंख्यातवें भाग अधिक या संख्यातगुणी इस प्रकार दो स्थान पतित होती है । सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके मिथ्यात्व. सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणी होती है । सात नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य । जघन्य भी होती है और अजघन्य भी । उनमेंसे अजघन्य स्थिति अपनी जघन्य स्थितिकी अपेक्षा असंख्यातवें भाग अधिक, संख्यातवें भाग अधिक या संख्यातगुणी अधिक इस प्रकार तीन स्थान पतित होती है । अप्रत्याख्यानावरण क्रोधकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके अप्रत्याख्यानावरण मान आदि ग्यारह कपाय, भय और जुगुप्साकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होती है। सात नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजधन्य होती है, जो जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणी होती है। इसी प्रकार ग्यारह कषाय भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये । अनन्तानुबन्धी क्रोधकी जघन्य स्थितिविभक्तिके १ आ. प्रतौ 'अज.' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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