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________________ गी० २२ ] हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिद्विदिविहत्तियसरिणयासो किं ज. अज० १ णि० जहण्णा । एवं रदीए । अरदि० ज० विहत्ति० मिच्छत्तसोलसक-हस्स-रदि-भय-दुगुछा०-सम्मत्त-सम्मामि० इस्थिवेदभंगो। तिण्णिवेद० किं ज० अज० १ णि. अज० वेढाणपदिदा संखे भागभहिया संखेजगणब्भहिया वा । सोग० किं ज. अज ? णि० जहण्णा । एवं सोग० ।। ८५७. ओरालियमिम्स तिरिक्खोघं । णवरि अणंताणु०चउक्क० मिच्छत्तभंगो। वेउव्वियकायजोगीसु मिच्छत्तज विहत्ति सम्मत्त-सम्मामि० किं ज० अज. ? णि• अजहण्णा असंखेगुणा । बारसक०-णवणोक० किं ज० अज० १ णि० अज० संखे०गुणा । सम्मत्त० ज० विहत्ति० मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक० किं ज० अज० ? णि अज० संखेगणा । सम्मामि०-अणंताणु०चउक्क० किं ज० अज० ? णि. अज० असंखेगुणा । एवं सम्मामि० । णवरि सम्मत्तं णत्थि । अणंताणु०-कोधज विहत्ति० सम्मत्त०-सम्मामि० किं ज० अज० ? णि. अज० असंखे० गुणा । मिच्छत्त०-बारसक०णवणोक० किं ज. अज० ? णि. अज० संखे०गणा । तिण्णिक० किं ज. [ अज.] असंख्यातवें भाग अधिक या संख्यातगुणी अधिक इस प्रकार दा स्थान पतित होती है। रतिकी स्थिति क्या जवन्य होती है या अजयन्य ? नियमसे जघन्य हाती है। इसी प्रकार रतिकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये । अरतिकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके मिथ्यात्व, सोलह कषाय, हास्य, रति, भय, जुगुप्सा, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग स्त्रीवेदके समान है। तीनों वेदोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है। जो संख्यातवें भाग अधिक या संख्यातगुणी अधिक इस प्रकार दो स्थान पतित होती है । शोककी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होती है। इसी प्रकार शोककी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके जानना चाहिर ७. औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंके सामान्य तियचोंके समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि इनके अनन्तानुबन्धी चतुष्क का भंग मिथ्यात्वके समान हे । वैक्रियिककाययोगियोंमें मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी स्थिति क्या जघन्य है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य है, जो जघन्य स्थितिसे असंख्यातगुणी है। बारह कषाय और नो नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणी होती है। सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवक मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणी होती है। सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो जघन्य स्थितिसे असख्यातगुणी होती है। इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये। किन्तु इतनी विशेषता है कि इसके सम्यक्त्व प्रकृति नहीं होती है। अनन्तानुबन्धी क्रोधकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो जघन्य स्थितिसे असंख्यातगुणी होती है। मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायों की स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणी होती है। अनन्तानुबन्धी मान आदि तीन कषायोंकी स्थिति क्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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