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________________ बयधवस्तासहिदे कसायपाहुडे [डिदिविहत्ती ३ पलिदो. असंखे०भागभहिया। णवरि भय-दुगछाओ तिहाणपदिदा। सम्मत्तसम्मामि० एइंदियभंगो। सत्तणोक० किं. ज. अज० १ णि. अज० तिहाणपदिदा असंखे०भागब्भहिया संखे भागब्भ० संखेन्गुणब्भहिया वा । एवं सोलसकसाय-भयदुगुंडाणं । णवरि भयजह० दुगु० किं ज० [अजह०] ? अजह० तं तु समयुत्तरमादि कादण जाव पलिदो० असंखे० भागभ० । एवं दुगु । सम्मत्त-सम्मामि० एइंदियभंगो। इत्थि० ज विहत्ति० मिच्छत्त-सोलसक० किं जह० अजहण्णा १ णि. अज० संखे० भागब्भहिया । अहणोक० किं ज० अज० १ णियमा अज० संखेगुणब्भहिया । सम्मत्त-सम्मामि० मिच्छत्तभंगो। एवं पुरिस० । णवुस० ज० विहत्ति० मिच्छत्तसोलसक०-इत्थि-पुरिस०-अरदि-सोग-भय-दुगछ० इत्थिवेदभंगो। सम्मत्त-सम्मामि० एइंदियभंगो । हस्सरदि० किं ज. अजह. ? णि० अज० वेहाणपदिदा असंखे भागब्भहिया संखे० गुणब्भहिया वा। हस्सज० विहत्ति० मिच्छत्त०-सोलसक०-णवुसअरदि-सोग-भय-दुगुछ०-सम्मत्त०-सम्मामि० इत्थिवेदभंगो। इत्थि-पुरिस० किं ज० अज० १ णि. अज वेढाणपदिदा असंखे०भागब्भहिया संखे गुणब्भहिया वा । रदि. लेकर पल्योपमके असंख्यातवें भाग अधिक तक हाती है। किन्तु इतनी विशेषता है कि भय और जुगुप्साकी स्थिति तीन स्थानपतित होती है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग एकेन्द्रियों के समान है । सात नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है. जो अपनी जघन्य स्थितिकी अपेक्षा असंख्यातवें भाग अधिक, संख्यातवें भाग अधिक या संख्यातगुणी अधिक इस प्रकार तीन स्थान पतित होती है। इसी प्रकार सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि भयकी जघन्य स्थितिवालेके जुगुप्साकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है। जो अपनी जघन्य स्थितिकी अपेक्षा एक समय अधिकसे लेकर पल्योपमके असंख्यातवें भाग अधिक तक होती है। इसी प्रकार जुगुप्साके विषयमें जानना चाहिये। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्य त्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके एकेन्द्रियोंके समान भंग है। स्त्रीवेदकी जघन्य स्थिति विभक्तिके धारक जीवके मिथ्यात्व और सोलह कषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो जयन्य स्थितिसे संख्यातवें भाग अधिक होती है। आठ नोंकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणी अधिक होती है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग मिथ्यात्वके समान है। इसी प्रकार पुरुषवेदकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये । नपुंसकवेदकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके मिथ्यात्व, सोलह कषाय, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, अरति, शोक, भय और जुगुप्साका भंग स्त्रीवेदके समान है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग एकेन्द्रियोंके समान है। हास्य और रतिकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो असंख्यातवें भाग अधिक या संख्यातगुणी अधिक इस प्रकार दो स्थान पतित होती है। हास्यकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग स्त्रीवेदके समान है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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