________________
५२८
जयघवलासहिदे कसायपाहुदे .. द्विदिविहत्ती ३ ९८५६. श्राहार० मिच्छत्तज०वि० सम्मत्त-सम्मामि० किं ज० अज० १ णि. जहण्णा । बारसक०-णवणोक० किं ज० अज० १.णि अज० संखे गुणा । एवं सम्मत्तसम्मामि० । अणंताणु०कोधज० मिच्छत्त-सम्मत्त सम्मामि०-बारसक०-णवणोक० किं ज० अज० १ णि. अज० संखे० गुणा । तिण्णिक० किं ज० अज० १ णि. जहण्णा । एवं तिण्हं कसायाणं । अपच्चक्खाणकोधज० वि० एकारसक०-णवणोक. किं ज. अज० १ णि जहण्णा । एकमेक्कारसकसाय-णवणोकसायाणं । एवमाहारमि० । कम्मइय. ओरालिय मिस्सभंगो। णवरि सत्तणोक. अण्णदरज० मिच्छ० सोलसक० सेसणोक० णिय० अज० विहाणपदिदा असंखे भागब्भहिया संखेगुणब्भहिया ।
____८६०. वेदाणुवादेण इत्थि० पंचिंदियभंगो । णवरि इत्थि ज०वि० सत्तणोक०चत्तारि संज० किं ज० अज० १ णि. जहण्णा । एवं सत्तणोकसाय-चत्तारिसंजलणाणं । णवंस. जह० विह० अहणोक०-चदुसंज० णि० अज० असंखे० गुणा । एवं णवंस, अरति और शोककी जघन्य स्थितिविभक्तिक धारक जीवक सन्निकष जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि नपुंसकवेदकी स्थिति दो स्थान पतित होती है।
८५६. आहारक काययोगियोंमें मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवों में सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य हाती है। बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणी होती है । इसी प्रकार सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवक सन्निकष जानना चाहिये । अनन्तानुबन्धी क्रोधकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नाकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती हे या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो अपनी जयन्य स्थितिसे संख्यातगुणी होती है । अनन्तानुबन्धी मान आदि तीन कषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य हाती है । इसी प्रकार अनन्तानुबन्धी मान आदि तीन कषायोंकी जयन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये । अप्रत्याख्यानावरण काधकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जावक ग्यारह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होती है। इसी प्रकार ग्यारह कषाय और नो नोकषायोंका जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जावके सनिकर्ष जानना चाहिये । इसी प्रकार आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंके जानना चाहिये । कामणकाययोगियोक .
औदारिकमिश्रकाययागियाक समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि सात नोकषायोमेसे किसी भा प्रकृतिका जघन्य स्थितिबालके मिथ्यात्व, सोलह कषाय और शेष नोकषायोंकी स्थिति नियमसे अजघन्य हाती है, जो असंख्यातवें भाग अधिक या संख्यातगुणी अधिक इस प्रकार दो स्थान पतित हाती है।
८५०. वद मागणाके अनुवादसे स्त्रीवेदियोंका भंग पंचेन्द्रियोंके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जोवक सात नाफपाय और चार संज्वलनों की स्थिति क्या जघन्य होती है या अजवन्य ? नियमसे जघन्य होती है। इसी प्रकार सात नोकपाय और चार संज्वलनों की जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये ।
१ श्रा० प्रतौ 'सेसे पोक' इति पाठः।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org.