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________________ monMAAAAnnnnnnnnn દૂ૦૦ भयघवलासहिदे कसायपाहुडे [द्विदिविहत्ती ३ कम्हि वि उच्चारणाए अरदि-सोगहिदी हस्सरदीणं व वेहाणपदिदा ति भणदि, तं जाणिय वत्तव्वं । हस्स० जह० विहत्ति० मिच्छत्त०-बारसक०-णवंस०-अरदि-सोगभय-दुगंछ० किं ज. अज. ? णियमा अज० संखे०गणा। सम्मत्त-सम्मामि०-अणंताणु० चउक्क० मिच्छत्तभंगो । इत्थि०-पुरिस०वे० किं ज० अज० १ णि० अज० विद्वाणपदिदा असंखे भाग० संखे गुणब्भहिया वा । रदि० किं ज० अज० ? णिय० जहण्णा । एवं रदि० । अरदि० जह० मिच्छत्त-बारसफ०-हस्स-रदि० किं ज. अज० ? णियमा अज० संखे० गुणा । सम्मत्त-सम्मामि०-अणंताणु०चउक्क० मिच्छत्तभंगो । इत्थि-पुरिसणवंस० किं ज० अज० १ णियमा अज० विद्वाणपदिदा असंखे०भागब्भहिया संखे०गुणब्भहिया वा। सोग० किं ज० अज० ? णि० जहण्णा । एवं सोग० । भयस्स ज० विहत्ति० मिच्छत्तबारसक० किं ज० [अज०] ? अज०, तं तु विद्वाणपदिदा असंखे०भाग भहिया संखे०भागभहिया वा । दुगुछ० किं ज० अज०१ णियमा जहण्णा । सेसं मिच्छत्तभंगो । एवं दुगुकाए । एवं पढमाए पुढवीए । ३८४८. विदियादि जाव छहि त्ति मिच्छत्त ज. विहत्तियस्स सम्मत्त-सम्मामि० समान दो स्थान पतित कही है सो जानकर उसका कथन करना चाहिये। हास्यकी जघन्य स्थिति विभक्तिवाले जीवके मिथ्यात्व, बारह कषाय, नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय और जुगुप्साकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणी होती है। सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्कका भंग मिथ्यात्वके समान है । स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो जघन्यसे असंख्यातवें भाग अधिक या संख्यातगुणी अधिक इस प्रकार दो स्थान पतित होती है । रतिकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होती है । इसी प्रकार रतिकी स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये । अरतिकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके मिथ्यात्व बारह कषाय, भय, जुगुप्सा, हास्य और रतिकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणी होती है। सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्कका भंग मिथ्यात्वके समान है । स्त्रीवेद पुरुषवेद और नपुंसकवेदकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो जघन्य स्थितिसे असंख्यातवें भाग अधिक या संख्यातगुणी अधिक इस प्रकार दो स्थान पतित होती है। शोककी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होती है। इसी प्रकार शोककी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये। भयकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके मिथ्यात्व और बारह कषायकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है। जो जघन्यसे असंख्यातवें भाग अधिक या संख्यातवें भाग अधिक इस प्रकार दो स्थान पतित होती है। जुगुप्साकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होती है। शेष कथन मिथ्यात्वके समान है। इसी प्रकार जुगुप्साकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये । इसी प्रकार पहली पृथिवीमें जानना चाहिये। ६८४८. दूसरीसे लेकर छठी पृथिवीतकके नारकियोंमें मिथ्यात्वको जघन्य स्थितिविभक्तिके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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