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________________ गा० २२ हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिद्विदिविहत्तियसरिणयासो ४६ असंखे०गुणा । अणताणु०कोध० ज० विहति० मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक० किं ज० अज० १ णि. अज० संखे गुणा । सम्मामि० किं ज० अजह० ? णियमा अजा, असंखे गुणब्भहिया । तिहमणंताणुबंधीणं किं० ज० अज० ? णि. जहण्णा । एवं तिहं कसायाणं । अपञ्चक्खा० कोधज० विहत्ति० मिच्छ०-एक्कारसक० किं ज० अज० ? [अज० ] तं तु समउत्तरमादि कादूण जाव पलि. असंखे०भागभहिया । भयदुगुंछ० कि० ज० अज० ? णिय० जहण्णा | सम्मत-सम्मामि०-अणंताणु०चउक्कासत्तणोक० मिच्छत्तभंगो । एवमेक्कारसकः । इथि० ज० विहत्ति० मिच्छत्त-बारसक०अहणोक० किं ज. अज० ? णि० अज० संख०गणा | सम्मत-सम्मामि०-अणंता०चउक्क० मिच्छत्तभंगो । एवं पुरिस० । णवूस० जहण्ण हिदिविहतियस्स मिच्छत्तबारसक०-इत्थि०-पुरिस० अरदि-सोग-भय-दुगुंछ० किं ज० अज० १ णियमा अज०, संखे०गणा । हस्सरदि० किं ज. अज० १ णियमा अज० वेढाणपदिदा असंखेभागब्भहिया संखे गणब्भहिया वा । सम्मत्त-सम्मामि०-अणंताणु०चउक्क मिच्छत्तभंगो। क्रोधकी जघन्य स्थितिके धारक जीवके मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो जघन्यसे संख्यातगुणी होती है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है । जो जघन्यसे असंख्यातगुणी अधिक होती है। शेष तीन अनन्तानुबन्धियोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होती है। इसी प्रकार अनन्तानुबन्धी मान आदि तीन कषायोंकी जघन्य स्थिति विभक्तिके धारक जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये । अप्रत्याख्यानावरण क्रोधकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके अप्रत्याख्यानावरण मान आदि ग्यारह कषायों की स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होती है । मिथ्यात्व की स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? जघन्य भी होती है और अजघन्य भी। उनमेंसे अजघन्य स्थिति जघन्य स्थितिकी अपेक्षा एक समय अधिकसे लेकर पल्योपमके असंख्यातवें भाग तक अधिक होती है। भय और जुगुप्साकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होती है । सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी चतुष्क और सात नोकषायोंका भंग मिथ्यात्वके समान है। इसी प्रकार अप्रत्याख्यानावरण मान आदि ग्यारह कषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये । स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके मिथ्यात्व, बारह कषाय और आठ नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य १ नियमसे अजघन्य होती है, जो जघन्यसे संख्यातगुणी अधिक होती है। सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्कका भंग मिथ्यात्वके समान है। इसी प्रकार पुरुषवेदको जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके जानना चाहिये। नपंसकवेदकी जघन्य स्थिति विभक्तिके धारक जीवके मिथ्यात्व, बारह कषाय, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, अरति, शोक, भय और जुगुप्साकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है जो जघन्यसे संख्यातगुणी अधिक होती है। हास्य और रतिकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजवन्य होती है, जो जघन्यसे असंख्यातगुणी अधिक या संख्यातगुणी अधिक इस प्रकार दो स्थान पतित होती है। तथा सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्कका भंग मिथ्यात्वके समान है। किसी उच्चारणामें अरति और शोककी स्थिति हास्य और रतिके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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