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________________ ९पा अजघन्य ? नियमसे जघन्य होत गा० २२) हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिहिदिविहत्यिसरिणयासो किं ज० अज० १ णियमा अज० असंखे०गुणा । बारसक० किं ज० अज० ? णियमा जहण्णा । एवं बारसक०-णवणोकसायाणं । सम्म० ज० विहतियस्स मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक० किं ज० अज० ? णि० अज० संखे० गणा । सम्मामि०-अणंताणु० चउक्क० किं ज० अज ? णिय. अज० असंखेगुणा । सम्मामिच्छ • जह• विहनियस्स मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक० किं जह० अजह• ? णिय. अज० संखजगुणा । अणताण चउक्क० किं जह० अजह ? णिय० अज० असं०गुणा । सम्म पत्थि । अणंताणु० कोह० ज० विहत्ति० मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक० किं ज० अज० ? णिय० अज० वेहाणपदिदा असंखे० भागमहिया संखे०भागब्भहिया वा । सम्मत्त-सम्मामि० किं ज० अज० ? णियमा अज० असंखे०गणा। तिण्णि कसाय० किं ज़० अज० ? णियमा जह० । एवं तिण्हं कसायाणं । .८४६, सत्तमाए पुढवीए मिच्छत्त० ज० विहत्ति० बारसक०-भय- दुका० कि ज० अज० १ जहण्णा अजहण्णा वा । जहण्णादो अज० समयुत्तरमादि कादूण जाव धारक जीवके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो जघन्य स्थितिसे असंख्यातगुणी होती है। बारह कषायों और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अलपन्य नियमसे जघन्य होती है। इसी प्रकार बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य स्थिति विभक्तिके धारक जीवके सन्निकण जानना चाहिये । सम्यक्त्वकी जयन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो जवन्य स्थितिसे संख्यातगुणी होती है। सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजवन्य ? नियमसे अजघन्य होती है। जो जघन्य स्थितिसे असंख्यातगुणी होती है । सम्यग्मिथ्यात्वकी जवन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है। जो अपनी जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणी होती है । अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थितिसे असंख्यातगुणी होती है। इसके सम्यक्त्व प्रकृति नहीं है इसलिये उसका सन्निकर्ष नहीं कहा। अनन्तानुबन्धी क्रोधकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके मिथ्यात्व बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थितिसे असंख्यातवें भाग अधिक या संख्यातवें भाग अधिक इस प्रकार दो स्थान पतित होती है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जा अपनी जघन्य स्थितिसे असंख्यातगुणी होती है। अनन्तानुबन्धी मान आदि तीन कषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होती है। इसी प्रकार अनन्तानुबन्धी मान आदि तीन प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये। ९८४६. सातवीं पृथिवीमें मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य १ जघन्य भी होती है और १ श्रा० प्रतौ संखे० गुणा इति पाठः । कार बारह कषाय और नौ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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