________________
गा०२२] द्विदिविहत्तीए कालो
- ३१ उक्क० एगसमत्रो। अणुक्क० जह० अंतोमुहुत्तमेगसमऊणं, उक्क० संखेज्जाणि वाससहस्साणि ।
$ ५७ तेउ०--बादरतेउ० --बादरतेउपज्ज--वाउ०-बादरवाउ०--बादरवाउपज्ज. उक्क० जहण्णुकस्सेण एगसमओ, अणुक० जह० खुद्दाभवग्गहणं समऊणं । णवरि पज्जत्ताणमंतोमुहुत्तं समऊणं । सव्वेसिमणुकस्सुकस्सं सगसगुक्कस्सहिदी ।
$ ५८. वणप्फदिकाइयाणमेइ दियभंगो। बादरवणप्फदिकाइयाणं बादरेइ दियजीवोंके मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिका सत्त्वकाल कितना है ? जघन्य और उत्कृष्ट सत्त्वकाल एक समय है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य सत्त्वकाल एक समय कम अन्तर्मुहूर्त है। और उत्कृष्ट सत्त्वकाल सख्यात हजार वर्ष है।
विशेषार्थ एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय और बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त जीवोंके जिस प्रकार उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल तथा अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल घटित करके लिख आये हैं उसी प्रकार यहां पृथिवीकायिक, बादर पृथिवीकायिक और बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त आदि जीवोंके जानना चाहिये। किन्तु इनके अनुत्कृष्ट स्थितिके उत्कृष्ट कालमें कुछ विशेषता है जिसका निर्देश मूलमें किया ही है । पृथिवीकायिक और जलकायिक जीवोंकी उत्कृष्ट कायस्थिति असंख्यात लोक प्रमाण कही है। बादर पृथिवीकायिक और बादर जलकायिक जीवोंकी उत्कृष्ट कायस्थिति उत्कृष्ट कर्मस्थिति प्रमाण कही है । तथा बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त और बादर जलकायिक पर्याप्त जीवोंकी उत्कृष्ट कायस्थिति संख्यात हजार वर्ष प्रमाण कही है सो इस क्रमसे उक्त जीवोंके अनुत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्ट काल जानना चाहिये।
५७. अग्निकायिक, बादर अग्निकायिक, बादर अग्निकायिक पर्याप्त, वायुकायिक, बादर वायुकायिक और बादर वायुकायिक पर्याप्त जीवोंके मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट सत्त्वकाल एक समय कम खुद्दाभवग्रहण प्रमाण है। इतनी विशेषता है कि पर्याप्तकोंके अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य सत्त्वकाल एक समय कम अन्तर्मुहूर्त है। तथा उपर्युक्त सभी जीवोंके अनुत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्ट सत्त्वकाल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थिति प्रमाण है।
विशेषार्थ-उक्त कायवाले जीवोंके भवके पहले समयमें उत्कृष्ट स्थितिका प्राप्त होना सम्भव है अतः इनके उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा । पर्याप्त जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और शेवका खुद्दाभवग्रहण प्रमाण है अतः इस जघन्य काल में से उत्कृष्ट स्थितिके कालके एक समय घटा देने पर जो एक समय कम खुद्दाभवग्रहणप्रमाण और एक समय कम अन्तर्मुहूर्त काल बचता है वह इनकी अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल है। इनमेंसे कौन किसका काल है यह खुलासा मूलमें ही किया है। तथा अग्निकायिक और वायुकायिकका उत्कृष्ट काल असंख्यात लोक प्रमाण है। बादर अग्निकायिक और बादर वायकायिकका कर्मस्थितिप्रमाण है और बादर अग्निकायिक पर्याप्त तथा बादर वायुकायिक पर्याप्तका उत्कृष्ट काल संख्यात हजार वर्ष है । इस प्रकार इनके अनुत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्ट काल ऊपर कही गई अपनी अपनी कास्थिति प्रमाण जानना ।
६५८. वनस्पतिकायिक जीवोंके एकेन्द्रियोंके समान, बादर वनस्पतिकायिक जीवोंके बादर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org