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________________ ४७६ गयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ हिदिविहत्ती ३ ® णवुसयवेदस्स उक्कस्सहिदिविहत्तियस्स मिच्छत्तस्स हिदिविहत्ती किमुक्कस्सा अणुक्कस्सा ? $ ७९१. सुगमं । * उकस्सा वा अणुकस्सा वा । $ ७६२ णवंसयवेदहिदीए उकस्साए संतीए जदि मिच्छत्तस्स उक्कस्सहिदी पबद्धा होज तो मिच्छत्तस्स उक्कस्सहिदिविहत्ती होदि अण्णहा अणुक्कस्सा; उक्कस्सादो हेडिमहिदीदो बंधतस्स उक्कस्सत्ताभावादो । 8 उकस्सादों अणुक्कस्सा समयूणमादि कादूण जाव पलिदोवमस्स असंखेजदिभागेण ऊणा त्ति । $ ७६३. पलिदो० असंखे० भागो किंपमाणो ? एगावलियब्भहियसमयूणाबाहाकंडयमेत्तो। अहिो किण्ण होदि ? ण, कसाएसु उक्कस्सहिदिबंधे संते मिच्छत्तस्स समऊणाबाहाकंडएणूणउकस्सहिदिमेत्तजहण्णहिदिबंधस्स तत्थुवलंभादो। एगावलियाए अहियत्तं कथमुवलब्भदे ? ण, पडिहग्गकाले वि णवुसयवेदस्स आवलियमेत्तकालमुक्कस्सहिदिसंभवादो । सेसं सुगमं; बहुसो परूविदत्तादो। * नपुसकवेदकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिके धारक जीवके मिथ्यात्वकी स्थितिविभक्ति क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ? ७६१. यह सूत्र सुगम है। * उत्कृष्ट होती है और अनत्कृष्ट भी । ६ ७६२. नपुंसकवेदकी उत्कृष्ट स्थितिक रहते हुए यदि मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध होता है तो मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति होती है, अन्यथा अनुत्कृष्ट स्थिति होती है, क्योंकि उत्कृष्टसे कमकी स्थितिका बन्ध करनेवालेके उत्कृष्ट स्थिति नहीं हो सकती। * वह अनुत्कृष्ट स्थिति अपनी उत्कृष्ट स्थितिकी अपेक्षा एक समय कमसे लेकर पल्योपमके असंख्यातवें भाग कम तक होती है। ६७६३ शंका-यहांपर पल्योपमके असंख्यातवें भागका कितना प्रमाण लिया है ? समाधान-एक समय कम आबाधाकाण्डको एक आवलि कालके जोड़ देने पर जितना प्रमाण हो तत्प्रमाण यहां पल्यका असंख्यातवाँ भाग काल लिया है। शंका-इससे अधिक क्यों नहीं होता है ? समाधान-नहीं, क्योंकि कषायोंकी उत्कृष्ट स्थिति के बन्ध होते समय मिथ्यात्वका कमसे कम स्थितिबन्ध एक समय न्यून आबाधाकाण्डकसे कम उत्कृष्ट स्थिति मात्र ही होता है, इससे कम नहीं। शंका-पल्यके असंख्यातवें भागको जो एक श्रावलि अधिक और एक समय कम आवाधा काण्डक प्रेमाण बतलाया है तो यहां एक आवलि काल अधिक कैसे सम्भव है ? समाधान-नहीं, क्योंकि प्रतिभन्न कालके भीतर भी नपुंसकवेदकी एक आवलि काल तक उत्कृष्ट स्थिति संभव है। सूत्रका शेष व्याख्यान सुगम है, क्योंकि उसका अनेकबार कथन कर आये हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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