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________________ गा० २२ ] द्विदिविहत्तीए उत्तरपयडिविदिविहत्तियसरिणयासो ® सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं हिदिविहत्ती किमुक्कस्सा अणुकस्सा ? ६७६४. सुगम० । णियमा अणुकस्सा। ७६५. णवुसयवेदुक्कस्सहिदिविहत्तियम्मि मिच्छाइडिम्मि सम्मत्त-सम्मामिच्छताणमुक्कस्सहिदीए अभावादो । ण च सम्माइटिपढमसमए पडिबद्धाए सम्मत्त-सम्मामिच्छत्नुकस्सहिदीए अण्णत्यत्थि संभवो; विरोहादो। * उकस्सादो अणुकस्सा अंतोमुहुत्त णमादि कादूण जाव एगा हिदि त्ति । पवरि चरिमुव्वेल्लणकंडयचरिमफालीए ऊणा । . ७६६. एदेसि दोण्हं सुत्ताणमत्थे भण्णमाणे जहा मिच्छत्तुक्कस्सद्विदिणिरु भणं काऊण सम्मत्त-सम्मामिच्छत्तदोसुत्ताणं परूवणा कदा तहा एत्थ वि कायव्वा; विसेसाभावादो। सोलसकसायाणं हिदिविहत्ती किमुक्कस्सा अणुकस्सा ? $ ७६७. सुगमं । * उकस्सा वा अणुकस्सा वा । * नपुंसकवेदकी उत्कृष्ट स्थितिके समय सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी स्थितिविभक्ति क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ? ६७६४. यह सूत्र सुगम है। * नियमसे अनुत्कृष्ट होती है। . ७६५. नपुंसकवेदकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिके धारक मिथ्यादृष्टि जीवके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति नहीं पाई जाती है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति सम्यग्दृष्टिके प्रथम समयमें होती है, अतः उसका अन्यत्र पाया जाना संभव नहीं है, क्योंकि ऐसा मानने पर विरोध आता है। * वह अनुत्कृष्ट स्थिति अन्तम हूते कम अपनी उत्कृष्ट स्थितिसे लेकर एक । स्थिति तक होती है । किन्तु इतनी विशेषता है कि इसमें से अन्तिम उद्वेलनाकाण्डककी अन्तिम फालिप्रमाण स्थितिको कम कर देना चाहिए । ७६६. इन दोनों सूत्रोंका अर्थ कहनेपर जिस प्रकार मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके रहते हुये सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वसम्बन्धी दो सूत्रोंका कथन किया है उसी प्रकार यहां भी करना चाहिये, क्योंकि दोनोंके कथनोंमें कोई विशेषता नहीं है। नपुंसकवेदकी उत्कृष्ट स्थितिके समय सोलह कषायोंकी स्थितिविभक्ति क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ? ६७६७. यह सूत्र सुगम है। • उत्कृष्ट होती है और अनुत्कृष्ट भी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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