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________________ गा० २२ ] हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिहिदिविहत्तियसरिणयासो ४७५ णिरुद्ध णवुसयवेदो णियमा अणुक्कस्सा; इत्थिवेदबंधकाले णवुसयवेदस्स बंधाभावादो। हस्स-रदीणं पुण उक्कस्सहिदीए णिरुद्धाए णवुसंयवेदहिदी सिया उक्कस्सा; हस्सरदिबंधकाले वि णqसयवेदस्स बंधुवलंभादो। सिया अणुक्कस्सा; कयाइ तत्थबंधाभावेण तस्स समयणादिवियप्पवलद्धीदो। इत्थिवेद उक्कस्सहिदीएण अरदि-सोगाणं सिया उक्कस्सा; इत्थिवेदेण सह एदेसिं बंधं पडि विरोहाभावादो। सिया अणुक्कस्सा; पडिहग्गसमए हस्स-रदीसु बंधमागदामु अरदि-सोगाणं समयणमादिं कादण जाव पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागब्भहियबीसंसागरोवमकोडाकोडिमेत्तवियप्पवलंभादो है। हस्स-रदीणमुक्कस्सहिदीए णिरुद्धाए पुण अरदि-सोगहिदी णियमा अणुक्कस्सा; पडिहग्गसमए हस्स-रदीसु बज्झमाणियासु तप्पडिवश्वाणमरदि-सोगाणं बंधाभावादो । तदो इत्थि-पुरिसवेदेसु णत्थि विसेसो त्ति सिद्धं । ___ ७६०. सुत्ताहिप्पारण पुण इत्थि-पुरिसवेदेसु वि विसेसो अत्थि चेव, हस्सरदीणं व इत्थि-पुरिसवेदाणमेगसमएण बंधुवरमाणभुवगमादो । तदो इत्थिवेदे णिरुद्ध हस्स-रदीणं समयणादिवियप्पा होति । हस्स-रदीसु पुण णिरुद्धासु इत्थि-पुरिसवेदाणमंतोमुहुत्त णादिवियप्पा त्ति । और शोक प्रकृतियोंक सन्निकर्षों में बतलाई गई है। खुलासा इस प्रकार है-स्त्रीवेदकी उत्कृष्ट स्थितिके रहन पर नपुंसकवेदकी स्थिति नियमसे अनुत्कृष्ट होती है, क्योंकि स्त्रीवेदके बन्धके समय नपुंसकवेदका बन्ध नहीं हाता। परन्तु हास्य और रतिकी उत्कृष्ट स्थितिके रहने पर नपुंसकवदको स्थिति कदाचित् उत्कृष्ट होती है, क्योंकि हास्य और रतिके बन्धके समय भो नपुसकवदका बन्ध पाया जाता है। कदाचित् अनुत्कृष्ट होती हैं, क्योकि कदाचित् हास्य और रातका वहा बन्ध नहीं होनसे नपुसकवदकी उत्कृष्ट स्थितिम एक समय कम आदि विकल्प पाये जात ह। स्त्रावदका उत्कृष्ट स्थातक साथ अरात और शाककी स्थिति कदाचित् उत्कृष्ट हाती है, क्याक स्त्रावदक बन्धक साथ इनका बन्ध हानमें काइ विराध नहीं आता है। कदाचित् अनुत्कृष्ट हाता ह, क्याक प्रातभग्नकालक प्रथम समयम हास्य और रतिक बन्धका प्राप्त हान पर अरात आर शाकका एक समय कम उत्कृष्ट स्थितिस लकर पल्यका असंख्यातवां भाग धिक बास काड़ाकाड़ा सागर तक स्थितिविकल्प देख जात है। परन्तु हास्य और रातकी उत्कृष्ट स्थितिके रहन पर अरात और शाकको [स्थात नियमस अनुत्कृष्ट हाता ह, क्योंकि प्रतिभग्न कालक प्रथम समयम हास्य और रातक बन्धका प्राप्त हान पर उनका प्रातपक्षभूत अरति ओर शाक प्रकृतियाका बन्ध नह। दाता ह, इसालय स्त्रावद आर पुरुषवदक विषयम काइ विशषता नहा ह यह । सिद्ध हुआ। ६७६०. परन्तु उक्त सूत्रके अभिप्रायानुसार स्त्रीवेद और पुरुषवेदके विषयमें भी विशेषता है ही, क्योंकि उक्त सूत्रमें हास्य और रतिके समान स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी एक समयक द्वारा बन्ध व्युच्छित्ति नहीं स्वीकार की है, अतः स्त्रीवेदकी उत्कृष्ट स्थिति के रहने पर हास्य और रतिके एक समय कम उत्कृष्ट स्थिति आदि विकल्प होते हैं। परन्तु हास्य और रातकी उत्कृष्ट स्थितिक रहने पर स्त्रीवेद और पुरुषवेदके अन्तर्मुहूर्त कम उत्कृष्ट स्थिति आदि विफल होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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