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________________ ४६८ मयधवलासहिदे कसायपाहुडे [द्विदिविहची ३ अण्णहा अणुक्कस्सा; बंधाभावेण अपडिग्गहाणं हस्स-रदीणमुवरि कसायुक्कस्सहिदीए संकमाभावादो। * उकस्सादो अणुकस्सा समयूणमादि कादूण जाव अंतोकोडाकोडि त्ति ? ७७६. तं जहा-अंतोमुहुत्तकालमावलियमेत्तकालं वा कसायुक्कस्सहिदि बंधिय पडिहग्गसमए बज्झमाणित्थिवेद-हस्स-रदीसु बंधावलियादिक्कतकसायहिदीए संकेताए तिण्हं पि उक्कस्सहिदिविहत्ती होदि। पुणो तदणंतरउवरिमसमए हस्स-रदिबंधवोच्छेदवारण अरदि-सोगेसु बंधमागदेसु इथिवेदस्सुक्कस्सहिदीए सह हस्सरदीणमणुक्कस्सहिदी होदि; अप्पणो उक्कस्सहिदीदो अधहिदिगलणेण गलिदेगसमयत्तादो। एवं हस्स-रदिहिदीए जाव समयूणावलियमेत्तकालो गलदि तावित्थिवेदस्मुक्कस्सहिदिविहत्ती चेव । उवरि अणुक्कस्सा होदि; तत्थ बंधावलियादीदकसायुकस्सहिदिसंकंतीए अभावादो। 8 ७७७. तदो अण्णेण जीवेण एगसमयं समयूणावलियूणकसायउक्कस्सहिदि बंधिय समयूणावलियमेत्तकालमुक्कस्सहिदि बंधिय पडिहग्गसमए इत्थिवेदेण सह बज्झमाणहस्स-रदीसु आवलियादिक्कंतकसायहिदीए संकामिदाए इत्थिवेद-हस्स-रदीणं अन्यथा अनुत्कृष्ट होती है, क्योंकि बन्ध नहीं होनेसे अपतद्ग्रहको प्राप्त हुई हास्य और रतिमें कषायकी उत्कृष्ट स्थितिका संक्रमण नहीं होता है । * वह अनुत्कृष्ट स्थिति अपनी उत्कृष्ट स्थितिकी अपेक्षा एक समय कमसे लेकर अन्तःकोड़ाकोड़ी सागर तक होती है । ६७७६, खुलासा इस प्रकार है-अन्तर्मुहूर्त काल तक या एक आवलि कालतक कषायकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करके प्रतिभन्न कालके पहले समयमैं बंधनेवाले स्त्रीवेद. हास्य और रतिमें बन्धावलिसे रहित कषायकी स्थितिके संक्रान्त होने पर तीनों ही प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थिति होती है । पुनः तदनन्तर अगले समयमें हास्य और रतिकी बन्धव्युच्छिति होकर अरति और शोकके बन्धको प्राप्त होने पर स्त्रीवेदकी उत्कृष्ट स्थितिके साथ हास्य और रतिकी अनत्कृष्ट स्थिति होती है. क्योंकि तब इन प्रकृतियोंकी अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थितिमेंसे अधःस्थितिंगल समय गल गया है। इस प्रकार जब तक हास्य और रतिकी स्थितिमेंसे एक समय कम एक आवलि प्रमाण काल जीर्ण होता है तब तक स्त्रीवेदकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति ही रहती है तथा इसके बाद स्त्रीवेदकी अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्ति होती है, क्योंकि एक समय कम एक आवलिके बाद स्त्रीवेदमें बन्धावलिसे रहित कषायकी उत्कृष्ट स्थितिका संक्रमण नहीं पाया जाता है। अर्थात् तब स्त्रीवेदमें बन्धावलिसे रहित कषायकी उत्कृष्ट स्थितिसे उत्तरोत्तर कम स्थितिका संक्रमण होता है । ६७७७. तदनन्तर किसी एक जीवने एक समय तक एक समयसे न्यून एक आवलि कम कषायकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करके तदनन्तर एक समय एक आवलि प्रमाण काल तक कषाय की उत्कृष्ट स्थितिको बाँध कर प्रतिभग्नकालके पहले समयमें स्त्रीवेदके साथ बंधनेवाली हास्य और रितमें बन्धावलिसे रहित कषायकी स्थितिका संक्रमण किया तब उसके स्त्रीवेद, हास्य और रति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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