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________________ गा० २२] द्विदिविहत्तीए उत्तरपयडिद्विदिविहत्तियसरिणयासो ४६७ बंधिय पडिहग्गसमए बज्झमाणित्थिवेदम्मि बंधावलियादिक्कतकसायहिदीए संकंताए इथिवेदहिदी उक्कस्सा होदि । तक्काले पुरिसवेदहिदी सगुक्कस्सं पेक्खिदूण अंतोइत्त णाः पुरिस-णवुसयवेदजहण्णबंधगद्धाणं समूहस्स अंतोमुहुत्तत्तु वलंभादो । पुणो कसायाणं समयणक्कस्सहिदि बंधिय पडिहग्गसमए बज्झमाणपुरिसवेदम्मि बंधावलियादीदकसायुक्कस्सहिदीए संकंताए पुम्विन्लहिदि पेखिदूण पुरिसवेदहिदी संपहि समयणा होदि । पुणो अवहिदमतोमुहुत्तमच्छिय उक्कस्ससंकिलेसं गंतूण कसायाणमुक्कस्सहिदि बंधिय पडिहग्गसमए बज्झमाणित्थिवेदम्मि बंधावलियादीदकसायहिदीए संकताए इत्थिवेदस्स उक्कस्सहिदी होदि । तत्काले पुरिसवेदहिदी सगुक्कस्सहिदि पेक्खिदूण समयाहियअंतोमुहुच णा । एवं जाणिदूण श्रोदारेयव्वं जाव णिव्वियपअंतोकोडाकोडि ति । * हस्स-रदीणं हिदिविहत्ती किमुक्कस्सा अणुक्कस्सा ? ६ ७७४. सुगममेदं । * उक्कसा वा अणुक्कस्सा वा । $ ७७५. जदि इस्थिवेदे बज्झमाणे हस्स-रदीणं बंधो अस्थि तो इत्थिवेदुक्कस्सहिदीए वित्तिओ एदासि पि उक्कस्सहिदीए; तिण्हं पयडीणमवरि अक्कमेण संकंतीए । बँधनेवाले स्त्रीवेदमें बन्धावलिसे रहित कषायकी स्थितिके संक्रमण करने पर स्त्रीवेदकी उत्कृष्ट स्थिति होती है । इस समय पुरुषवेदकी स्थिति अपनी उत्कृष्ट स्थितिको देखते हुए अन्तर्मुहूर्तकम होती है, क्योंकि पुरुषवेद और नपुंसकवेदके जघन्य बन्धककालोंका समूह अन्तर्मुहूर्त पाया जाता है। पुनः कषायोंकी एक समय कम उत्कृष्ट स्थितिको बांधकर प्रतिभन्नकालके पहले समयमें बंधनेवाले पुरुषवदमें बन्धावलिसे रहित कषायकी एक समय कम उत्कृष्ट स्थितिके संक्रान्त होने पर पुरुषवेदकी पहलेकी स्थितिको देखते हुए इस समयकी स्थिति एक समय कम होती है। पुनः अवस्थित अन्तर्मुहूर्त कालतक ठहर कर और उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त होकर तथा कषायकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करके प्रतिभन्न कालके प्रथम समयमें बँधनेवाले स्त्रीवेदमें बन्धावलिसे रहित कषायकी स्थितिके संक्रान्त होने पर स्त्रीवेदकी उत्कृष्ट स्थिति होती है। तथा उस समय पुरुषवेदकी स्थिति अपनी उत्कृष्ट स्थितिको देखते हुए एक समय अधिक अन्तर्मुहूर्त कम होती है। इसी प्रकार जान कर निर्विकल्प अन्तःकोड़ाकोड़ी स्थितिके प्राप्त होनेतक पुरुषवेदकी स्थितिको घटाते जाना चाहिये। • स्त्रीवेदकी उत्कृष्ट स्थितिके समय हास्य और रतिको स्थितिविभक्ति क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ? ६७७४. यह सूत्र सुगम है । • उत्कृष्ट होती है और अनुत्कृष्ट होती है । ६७७५. यदि स्त्रीवेदके बन्धके समय हास्य और रतिका बन्ध होता है तो स्त्रीवेदकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाला होता हुआ इन दोनोंकी भी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाला होता है; क्योंकि बन्धावलिसे रहित कषायकी उत्कृष्ट स्थिति तीनों प्रकृतियोंमें एकसाथ संक्रान्त हुई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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