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________________ wwwwwwwwwww ४४० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ धुवहिदि सम्मत्तग्गहणपाओग्गं पत्ता ति । पुणो अण्णेण जीवेण बद्धमिच्छत्तधुवहिदिणा दुसमउत्तरपडिहग्गद्धमच्छिदेण सम्मत्त-मिच्छत्तद्धाओ अवहिदाओ अच्छिय मिच्छत्तु कस्सहिदीए पबद्धाए अण्णो अपुणरुतवियप्पो होदि । एवं सण्णियासपाओग्गधुवहिदिमवहिदेण कमेण बंधाविय पडिहग्गद्धा तिसमयुत्तरादिकमेण वड्डावेयव्वा जाव सगजहण्णद्धादो संखेज्जगुणत्वं पत्ता त्ति । एवं वडाविदे पंचमवियप्पो समत्तो होदि। ७२३. अधवा पंचमवियप्पो एवमुप्पाएयव्यो। तं जहा- समयूणमिच्छत्तकस्सद्विदि बधाविय पडिहग्गद्ध चेव समयुत्तरादिकमेण जहण्णद्धादो संखेजगुणं ति वडाविय पुणो पडिहग्गद्धाविससमेतमेगवारेण मिच्छत्तहिदिमोदारिय पणो तमवहिदं कादूण समयुत्तरादिकमेण पडिहग्गधं चेव संखेज्जगुणं चि वडाविय पुणो मिच्छत्तहिदी अप्पिदहिदीदो पडिहग्गद्धाविसेसमेत्तमोदारेदव्या । एवं णेयव्वं जाव तप्पाओग्गमिच्छत्तधुवहिदि त्ति । एवं णीदे विदियपयारेण पंचमवियप्पो परूविदो होदि । ७२४. संपहि तदियपयारेण पंचमवियप्पस्स परूवणा कीरदे । तं जहासमयूणुक्कस्सहिदिपबद्धमिच्छादिद्विणा समयाहियपडिहग्गद्धमच्छिदेण सव्वजहण्णयोग्य मिथ्यात्वकी ध्रुव स्थितिके प्राप्त होने तक चार समय कम आदिके क्रमसे मिथ्यात्वकी स्थितिको घटाते जाना चाहिये । पुनः जिसने मिथ्यात्वकी ध्रु वस्थितिका बन्ध किया है ऐसा कोई एक अन्य जीव मिथ्यात्वसे निवृत्त होनेके दो समय अधिक अवस्थित मिथ्यात्वमें रहा । पुनः सम्य क्त्व और मिथ्यात्वके अवस्थित कालोंतक सम्यक्त्व औरमिथ्यात्वमें रह कर यदि उसने मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध किया है तो उसके उस समय सन्निकर्षका एक अन्य अपुनरुक्त विकल्प प्राप्त होता है। इसी प्रकार आगेके विकल्प लानेके लिये जो सन्निकर्ष के योग्य ध्र वस्थितिको अवस्थित करके उसका बन्ध करता है और जब तक अपने जघन्यसे उत्कृष्ट विकल्प संख्यातगुणा नहीं प्राप्त होता है तब तक मिथ्यात्वसे निवृत्त होनेके अवस्थित कालको तीन समय अधिक आदिके क्रमसे बढ़ाता जाता है उसके इस प्रकार उक्त कालके बढ़ाने पर पांचवां विकल्प समाप्त होता है। ६७२३. अथवा पांचवां विकल्प इस प्रकार उत्पन्न करना चाहिये, जो इस प्रकार है-पहले एक समय कम मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करावे । तथा मिथ्यात्वसे निवृत्त होनेका जो जघन्य काल है उसे पहली बार एक समय और दूसरी बार दो समय इस प्रकार उत्तरोत्तर जघन्यसे संख्यातगुणा उत्कृष्ट काल प्राप्त होने तक बढ़ाता जावे । तदनन्तर मिथ्यात्वसे निवृत्त होनेके उत्कृष्ट कालमेंसे जघन्य कालको घटा कर जो शेष रहे तत्प्रमाण मिथ्यात्वकी स्थितिको एक साथ घटा कर उसे अवस्थित करदे और मिथ्यात्वसे निवृत्त होनेका जो जघन्य काल है उसे पहली बारमें एक समय, दूसरी बारमें दो समय इस प्रकार उत्तरोत्तर जघन्यसे संख्यातगुणा उत्कृष्ट काल प्राप्त होने तक बढ़ाता जावे । तदनन्तर मिथ्यात्वसे निवृत्त होनेके उत्कृष्ट कालमेंसे जघन्य कालको घटा कर जो शेष रहे तत्प्रमाण मिथ्यात्वको स्थितिको दूसरी बार घटाना चाहिये । इस प्रकार सम्यक्त्वके योग्य मिथ्यात्वकी ध्रु वस्थितिके प्राप्त होने तक यह विधि करते जाना चाहिये। इस प्रकार इस विधिके करने पर दूसरे प्रकारसे पांचवें विकल्पकी प्ररूपणा होती है। . ६७२४. अब तीसरे प्रकारसे पांचवें विकल्पकी प्ररूपणा करते हैं, जो इस प्रकार है-एक समय कम मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाला एक मिथ्यादृष्टि जीव मिथ्यात्वसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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