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गा० २२) द्विदिविहत्तीए उत्तरपयडिहिदिविहत्तियसरिणयासो
४३६ $ ७२२. संपहि दुसंजोगेण पंचमपरूवणं वत्तइस्सामो ।तं जहा—एक्केण पुव्वुप्पाइदसम्मत्तण अविणद्ववेदगपाओग्गेण समयूर्ण मिच्छत्तु कस्सहिदि बंधिय पडिहग्गद्ध समयाहियमच्छिय सम्मत्त-मिच्छत्तद्धाओ अवहिदाओ अच्छिय मिच्च्छत्तु कस्सहिदीए पबद्धाए अपुणरुत्तवियप्पो होदि । पुव्वुत्तसम्मत्तहिदि पेक्खिदूण एसा तहिदी दसमयणा होदि, दोण्हं णिसेगाणमेगवारेण गालिदत्तादो। पुणो अण्णेण जीवेण दुसमऊणमिच्छत्त कस्सहिदि बंधिय समयाहियपडिहग्गद्धमवहिदसम्मत्त-मिच्छत्तद्धाओ अच्छिय मिच्छत्तु कस्सहिदीए पबद्धाए सम्मत्तहिदी तिसमयूणा होदि । पुणो अवरेण जीवेण बद्धतिसमऊणमिच्छत्तु कस्सहिदिणा समयाहियजहण्णपडिहग्गद्धमच्छिदेण सम्मत्तमिच्छत्तद्धाओ अवहिदाओ अच्छिय मिच्छत्तु कस्सहिदीए पबद्धाए सम्मत्तहिदी चदुसमयूणा होदि । एवं मिच्छत्तहिदी चदुसमयूणादिकमेण ओदारेयव्वा जाव मिच्छत्तसम्यक्त्वकी स्थितिमें एक-एक समय कम किया गया है। और इस प्रकार सम्यक्त्वकी ध्रुवस्थिति प्राप्त होनेतक सन्निकर्षके विकल्प प्राप्त किये गये हैं। आगे जिस प्रकार उद्वेलनासे प्रथम प्ररूपणामें सन्निकर्ष विकल्प प्राप्त किये गये हैं उसी प्रकार यहाँ भी प्राप्त कर लेना चाहिये। इस प्रकार दूसरी प्ररूपणा समाप्त हुई। तीसरी प्ररूपणामें प्रतिभन्न कालके समान सम्यक्त्वके काल में एक-एक समय बढ़ाकर सम्यक्त्व प्रकृतिकी एक एक समय कम स्थिति प्राप्त की गई है। विशेष विधि दूसरी प्ररूपणाके समान जानना चाहिये । चौथी प्ररूपणामें मिथ्यात्वके कालमें एक एक समय बढ़ाकर सम्यक्त्व प्रकृतिकी एक एक समय कम स्थिति प्राप्त की गई है। यहाँ भी विशेष विधि दूसरी प्ररूपणाके समान जानना चाहिये । इस प्रकार एक संयोगी प्ररूपणा समाप्त हुई, क्योंकि इससे और अधिक बार एकसंयोगीप्ररूपणा संभव नहीं है।
इस प्रकार एकसंयोगी प्ररूपणा समाप्त हुई। ६७२२. अब दो संयोगसे पांचवीं प्ररूपणाको बतलाते हैं जो इस प्रकार है-जिसने पहले सम्यक्त्व उत्पन्न किया था और जिसका वेदक सम्यक्त्वके योग्य मिथ्यात्वका काल नष्ट नहीं हुआ है ऐसा कोई एक जीव एक समय कम मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिको बांधकर और मिथ्यात्वसे निवृत्त होनेके एक समय अधिक अवस्थित कालको ब्यतीत करके तदनन्तर सम्यक्त्व और मिथ्यात्वके अवस्थित कालोंको व्यतीत करके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करता है तो उसके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धके समय सन्निकर्षका अपुनरुक्त विकल्प होता है । पूर्वोक्त सम्यक्त्वकी स्थितिको देखते हुए यह स्थिति दो समय कम है, क्योंकि यहां उसके दो निषेक एक ही बारमें गला दिये गये हैं । पुनः अन्य कोई जीव दो समय कम मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिको बांध कर और मिथ्यात्वसे निवृत्त हानेके एक समय अधिक अवस्थित काल तक तथा सम्यक्त्व और मिथ्यात्वके अवस्थित कालों तक क्रमसे मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और मिथ्यात्वमें रह कर यदि मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करता है तो उसके उस समय सम्यक्त्वकी स्थिति पूर्वोक्त स्थितिको देखते हुए तीन समय कम होती है । पुनः जिसने तीन समय कम मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध किया है ऐसा कोई एक जीव मिथ्यात्वसे निवृत्त होनेके एक समय अधिक जघन्य काल तक मिथ्यात्वमें रहा । पुनः सम्यक्त्व और मिथ्यास्वके अवस्थित कालोंको व्यतीत करके यदि उसने मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध किया है तो उसके उस समय सम्यक्त्वकी स्थिति पूर्वोक्त स्थितिको देखते हुए चार समय कम होती है। इस प्रकार वेदकसम्यक्त्वके ग्रहण करनेके
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