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________________ गा० २२ ] वित्त उत्तरपयडिद्विदिवित्तियसविण्यासो सम्मत्त-मिच्छत्तद्धाओ अच्छिय मिच्छत्तुकस्सद्विदीए पबद्धाए अण्णो सण्णियासवियन्पो होदि । पुणो मिच्छत्तुकस्सहिदिं दुसमपूणं बंधिय पहिग्गद्ध समयाहियमच्छिय सम्मत्त-मिच्छत्तद्धाओ अवद्विदाओ अच्छिय मिच्छत्तुक्कस्सद्विदीए पबद्धाए णो सण्णियासवियप्पो होदि । पुणो अण्णेण जीवेण दुसमऊणमिच्छत्तु क्कस्सहिदि बंधिय दुसमयुत्तरं जहण्णप डिहग्गद्धमच्छिय सम्पत्त-मिच्छत्तद्धाओ अवहिदाओ अच्छिय मिच्छतुक्कस्सहिदीए पबद्धाए अण्णो सण्णियासवियप्पो । एवमेगवारं डिदि समयूर्ण वडाविय विदियवारं पडिहग्गकालसमए एक्केण वडाविय ओदारेदव्वं जाव जहण्णपहिग्गद्धा संखेज्जगुणा जादा त्ति । पुणो एदेण सरूवेण जाणिदूण ओदारेदव्वं जाव सम्मत्तस्स एगा हिंदी दुसमयकाला चेद्विदा त्ति । एवमण्णत्थ वि एदमत्थपरूवणमवहारिय परूवेदव्वं । एवं पंचमवियप्पो गदो ५ । $ ७२५. संपहि छडवियप्पपरूवणा कीरदे । तं जहा – मिच्छत् कस्सद्विदिं समऊण-दुसमऊणादिकमेण बंधाविय पडिहग्गद्धमवहिदं करिय सम्मत्तद्ध समयाहियदुसमयाहियादिकमेण वड्डाविय मिच्छत्तकालमवहिदं करिय मिच्छत्तु कस्सहिदीए पबद्धाए छवियप्पो होदि । एत्थ पंचवियप्पस्सेव तीहि पयारेहि परूवणा कायव्वा । निवृत्त होनेके एक समय अधिक जघन्य काल तक मिथ्यात्वमें रहा । पुनः उसके सम्यक्त्व और मिथ्यात्वके सबसे जघन्य काल तक क्रमसे सम्यक्त्व और मिथ्यात्वमें रह कर मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करने पर एक अन्य सन्निकर्ष विकल्प प्राप्त होता है । पुनः दो समय कम मिध्यात्व की उत्कृष्ट स्थितिको बोध कर कोई एक जीव मिथ्यात्वसे निवृत्त होनेके एक समय अधिक जघन्य काल तक मिध्यात्वमें रहा । तदनन्तर उसके सम्यक्त्व और मिथ्यात्वके अवस्थित कालों तक क्रमसे सम्यक्त्व और मिध्यात्वमें रहकर मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्ध करने पर एक अन्य विकल्प प्राप्त होता है । पुनः एक अन्य जीव दो समय कम मिध्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिको बांधकर मिथ्यात्व से निवृत्त होनेके दो समय अधिक जघन्य काल तक मिध्यात्वमें रहा । तदनन्तर उसके सम्यक्त्व और मिथ्यात्व के अवस्थित कालोंतक क्रमसे सम्यक्त्व और मिथ्यात्वमें रहकर Farrant उत्कृष्ट स्थितिके बन्ध होने पर एक अन्य सन्निकर्षविकल्प प्राप्त होता है। इस प्रकार एक बार मिथ्यात्वकी स्थितिको एक समय कम करके और दूसरी बार मिध्यात्वसे निवृत्त होनेके कालको एक समय बढ़ाकर सम्ययत्वकी स्थितिको तब तक घटाते जाना चाहिये जब जाकर मिध्यात्व से निवृत्त होने का जघन्य काल संख्यातगुणा हो जावे । पुनः इसी क्रम से आगे भी सम्यक्त्वकी दो समय कालप्रमाण स्थितिके प्राप्त होने तक सम्यक्त्वकी स्थितिको घटाते जाना चाहिये। इसी प्रकार अन्यत्र भी इस अर्थपदका निश्चय करके कथन करना चाहिये । इस प्रकार पाचवाँ विकल्प समाप्त हुआ । ९ ७२५. अब छठे विकल्पकी प्ररूपणा करते हैं । वह इस प्रकार है- मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका एक समय कम, दो समय कम इत्यादि क्रमसे बन्ध कराके और मिथ्यात्वसे निवृत्त होनेके कालको अवस्थित करके तथा सम्यक्त्वके कालको एक समय अधिक, दो समय अधिक आदि क्रमसे बढ़ाकर और मिथ्यात्वके कालको अवस्थित करके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध कराने पर छा विकल्प होता है। यहां पर जिस प्रकार पांचवें विकल्पकी तीन प्रकार से • प्ररूपणा की है उसी प्रकार छठे विकल्पकी तीन प्रकारसे प्ररूपणा करनी चाहिये। इस प्रकार ५६ Jain Education International ४४१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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