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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ द्विदिनिहत्ती ३ जीवेण वेदगसम्मत्तपाओग्गेण बद्धमिच्छत्तुक्कस्सहिदिणा समयाहियसव्वजहण्णपडिहग्गद्धमच्छिय सम्मत्त घेत्तण सव्वजहण्णसम्मत्त-मिच्छत्तद्धाओ गमिय उक्स्ससंकिलेसं पूरेदूण मिच्छत्तु कस्सहिदीए पबद्धाए सम्मत्तोघुक्कस्सहिदि पेक्खिदू ण संपहियसम्मत्त हिदी समयाहियअंतोमुहुत्तेणूणा होदि । पुणो अण्णेण जीवेण बद्धमिच्छत्तु क्कस्सहिदिणा दुसमयाहियपडिहग्गद्धमच्छिय वेदगसम्म पडिवण्णेण सव्वजहण्णसम्मत्त-मिच्छत्तद्धाओ गमिय मिच्छत्त कस्सहिदीए पबद्धाए सम्मत्तोघुक्कस्सहिदीदो संपहियसम्मचहिदी दुसमयाहियअंतोमुहुत्तेणूणा होदि । एवं पडिहग्गकालं तिसमयाहिय-चदुसमया हियादिकमेण वडाविय सेससम्मत्त-मिच्छत्तजहण्णकाले अवहिदे कादण मिच्छत्त क्कस्सहिदि बंधाविय णेदव्वं जाव जहण्णपडिहग्गकालादो उक्कस्सेण संखेजगुणं पावेदि त्ति। तं पचे मिच्छत्तु क्कस्सहिदि बंधाविय गेण्हिदव्वं । पुणो उक्कस्सपडिहग्गकालम्मि जहण्हपडिहग्गकालं सोहिय सुद्धसेसमेत्तकालेणूणमिच्छत्त कस्सहिदि बंधिय पडिहग्गो होद्ण सम्म पडिवज्जिय मिच्छ गंतूणवहिदतिण्णिकाले अच्छिय मिच्छत्तुक्कस्सहिदीए पबद्धाए सम्मत्तोघुक्कस्सहिदि पेक्खिदूण संपहियसम्मत्तहिदी अंतोमुहुत्तेण पडिहग्गतदनन्तर जिसके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध हुआ है ऐसा वेदकसम्यक्त्वके योग्य एक अन्य मिथ्यादृष्टि जीव मिथ्यात्वसे च्युत होनेके समयाधिक सबसे जघन्य प्रतिभग्न कालतक मिथ्यात्वमें रह कर सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ और सम्यक्त्व तथा मिथ्यात्वके सबसे जघन्य कालोंको व्यतीत करके उसने उत्कृष्ट संक्लेशकी पूर्ति की तब उसके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्ध होने पर सम्यक्त्वकी सामान्य उत्कृष्ट स्थितिको देखते हुए इस समयकी सम्यक्त्वकी स्थिति एक समय अधिक अन्तर्मुहूर्त प्रमाण कम होती है। तदनन्तर जिसने मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध किया है ऐसा कोई एक अन्य मिथ्या दृष्टि जीव मिथ्यात्वसे च्युत होनेके दो समय अधिक जघन्य प्रतिभग्न काल तक मिथ्यात्वमें रहकर वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ और सम्यक्त्व तथा मिथ्यात्वके सबसे जघन्य कालोंको व्यतीत किया और इस प्रकार उसके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्ध होने पर सम्यक्त्वकी ओघ उत्कृष्ट स्थितिकी अपेक्षा इस समयकी सम्यक्त्वकी स्थिति दो समय अधिक अन्तर्मुहूर्तप्रमाण कम होती है। इसी प्रकार मिथ्यात्वसे च्युत होनेके कालको तीन समय अधिक, चार समय अधिक आदि क्रमसे बढ़ाते हुए तथा सम्यक्त्व और मिथ्यात्वके शेष दो जघन्य कालोंको अवस्थित करके और मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध कराते हुए तब तक कथन करते जाना चाहिये जब जाकर मिथ्यात्वसे च्युत होनेके जघन्य कालसे उत्कृष्ट काल संख्यात गुणा प्राप्त होवे । इस प्रकार इसके प्राप्त होने पर मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बम्ध कराके सम्यक्त्वकी स्थिति ग्रहण करना चाहिये । पुनः मिथ्यात्वसे च्युत होनेके उत्कृष्ट प्रतिभग्न कालमेंसे मिथ्यात्वसे च्युत होनेके जघन्य प्रतिभग्न कालको घटाकर जो शेष रहे उतने कालसे कम मिथ्यात्वकी उत्कृष्टस्थितिका बन्ध करके तथा प्रतिभग्नहोकर और वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त करके अनन्तर जो मिथ्यात्वमें गया है और इस प्रकार तीन अवस्थित कालों तक तीनों स्थानोंमें रहा है उसके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धके समय सम्यक्त्वकी ओघ उत्कृष्ट स्थितिको देखते हुए इस समय संबंधी सम्यक्त्वकी स्थिति अन्तर्मुहूर्त और प्रतिभग्नकाल विशेष प्रमाण कम होती है। यह सन्निकर्षविकल्प पुनरुक्त है। तदनन्तर वेदकसम्यक्त्वके योग्य एक अन्य मिथ्यादृष्टि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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