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________________ ४२७ गा० २२.] हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिहिदिविहत्तियसरिणयासो वेदगसम्मत्त जहण्णकालेण मिच्छत्त गंतूणुक्कस्ससंकिलेसावूरणजहण्णकालेण च । एक्केण सम्मत्तसंतकम्मिएण मिच्छाइटिणा उक्कस्ससंकिलेसमावूरिय बद्धमिच्छत्तु - क्कस्सहिदिणा सव्वजहण्णपडिभग्गद्धमच्छिय वेदगसम्म घेत्तूण कयसम्मत्तुक्कस्सहिदिणा अंतोमुहुत्तूणसत्तरिसागरोवमकोडाकोडिमेत्तसम्मत्तुक्कस्सहिदि कमेण अघहिदिगलणाए जहण्णवेदगसम्मत्तद्धमेशेण ऊणियं करिय मिच्छत्तं गंतूण सव्वजहण्णकालेणावूरिदुक्कस्ससंकिलेसेण मिच्छत्तु कस्सहिदीए पबद्धाए एत्तियमेतेणेव कालेणूणत्तु वलंभादो। ___७१३. पुणो मिच्छत्तस्स समयूणुकस्सहिदि बंधिय अवहिदपडिहग्गकालेण अघहिदिगलणाए ऊणं करिय वेदगसम्म घेत्त ण सम्मत्तु कस्सहिदि समयूणमुप्पाइय अवहिदसम्मत्तमिच्छत्तद्धाओ कमेण गमिय मिच्छत्तु क्कस्सहिदीए पबद्धाए सम्मनहिदी सगुक्कस्सहिदिं पेक्खिदूण समयाहियअंतोमुहुत्तेण ऊणा होदि । एवं दुसमयूणमिच्छतुक्कस्सहिदि बंधिय अवहिदपडिहग्गसम्मत्तमिच्छत्तद्धाओ जहणियाओ कमेण गमिय मिच्छत्तु क्कस्सहिदीए पबद्धाए सम्मत्तहिदीए सगुक्कस्सहिदि पेक्खिदूण दुसमयाहिय शंका-कमका प्रमाण कितना है ? समाधान-एक समय कम वेदक सम्यक्त्वका जघन्य काल और मिथ्यात्वको प्राप्त होकर उत्कृष्ट संक्लेशको पूर्ण करनेवाला जघन्य काल ये दोनों काल यहां कम का प्रमाण है। जिसने उत्कृष्ट संक्लेशको करके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिको बांधा है ऐसे किसी एक सम्यक्त्व सत्कर्मवाले मिथ्यादृष्टि जीवने मिथ्यात्वसे च्युत होनेमें लगनेवाले सबसे जघन्य काल तक मिथ्यात्वमें रह कर वेदक सम्यक्त्वको प्राप्त किया और वहां सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट स्थितिको किया। अनन्तर वह जीव सम्यक्त्वकी अन्तर्मुहूर्त कम सत्तर कोड़ाकोड़ी सागरप्रमाण उत्कृष्ट स्थिातको क्रमसे अधःस्थितिगलनाके द्वारा वेदक सम्यक्त्वके जघन्य काल प्रमाण कम करके मिथ्यात्वमें गया और वहां उसने सबसे जघन्य कालके द्वारा उत्कृष्ट संक्लेशको पूरा करके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिको बांधा इस प्रकार वेदक सम्यक्त्वके पहले समयसे लेकर यहां तकका काल ही यहां कम का प्रमाण जानना चाहिये। अर्थात इतने कालको सम्यक्त्वकी उत्कष्ट स्थतिमेंसे घटा देने पर जो स्थिति शेष रहे अधिकसे अधिक उतनी अनुत्कृष्ट स्थिति मिथ्यात्वकी उत्कृष्टि स्थितिके समय संभव है, इससे और अधिक नहीं। ६७१३. पुन: मिथ्यात्वकी एक समय कम उत्कृष्ट स्थितिको बांधकर और अवस्थित प्रतिभग्न कालको अधःस्थितिगलनाके द्वारा कम करके अनन्तर वेदक सम्यक्त्वको ग्रहण करके और वेदक सम्यक्त्वके पहले समयमें सम्यक्त्वकी एक समय कम उत्कृष्ट स्थितिको उत्पन्न करके तथा सम्यक्त्व और मिथ्यात्वके अवस्थित कालोंको क्रमसे ब्यतीत करके जो मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिको बांधता है उसके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके समय सम्यक्त्वकी स्थिति अपनी उत्कृष्ट स्थितिको देखते हुए एक समय अधिक अन्तर्मुहूर्त काल प्रमाण कम होती है । इसी प्रकार मिथ्यात्व की दो समय कम उत्कृष्ट स्थितिको बांधकर तदनन्तर प्रतिभग्नकाल, सम्यक्त्वकाल और .. मिथ्यात्वकाल इन तीनों अवस्थित जघन्य कालोंको क्रमसे बिता कर जो मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिको बांधता है उसके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके समय सम्यक्त्वकी स्थिति अपनी उत्कृष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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