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जयधवलासहिदे कसायपाहुरे . [हिदिविहती है तत्थ संतकम्मियस्स सण्णियासपरूवणहमुत्रमुत्तं भणदि--
ॐ जदि कम्मसियो णियमा अणुकस्सा ।
६७११. कुदो ? मिच्छत्तस्स उक्कस्सहिदीए बद्धाए सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणमुक्कस्सहिदीए वेदयसम्मादिहिपढमसमए चेव समुप्पज्जमाणाए उप्पत्तिविरोहादो। ण च पढमसमए वेदगसम्माइहिपडिबद्ध कज मिच्छत्त क्कस्सहिदिसंतकम्मियमिच्छाइहिपडिबद्ध होदि; कज-कारणणियमाभावप्पसंगादो । तदो णियमा अणुक्कस्सा ति सद्दहेयव्वं । .
उक्कस्सादोअणुक्कस्सा अंतोमुहुत्त णमादि कादूण जाव एगा हिदित्ति।
$ ७१२. एदस्स मुत्तस्स अत्थो वुच्चदे। तं जहा–मिच्छत्तुक्कस्सहिदिपंधकाले सम्मत्तहिदी सगुकस्सं पेक्खिदण समयणा दुसमयूणा तिसमयूणा वा ण होदि; सम्मत्तुकस्सहिदिधारयवेदगसम्मादिहिविदियसमए तदियसमए वा मिच्छत्तकम्मस्स बंधाभावादो । ण च मिच्छत्तपञ्च एण बज्झमाणाणं पयडीणं तेण विणा बंधो अस्थि; अतकजत्तप्पसंगादो। तम्हा मिच्छत्त क्कस्सहिदिबंधकाले सम्मत्त-सम्मामिच्छत्तहिदीए सगसगुक्कस्सहिदि पेक्खिदूण अंतोमुहुत्तू णियाए होदव्वं । केत्तिएणूणा ? समयूणसाथ सम्बन्धका विरोध है, अतः सत्कर्मवालोंके सन्निकर्षका कथन करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं
* यदि वह जीव सत्कर्मवाला होता है तो नियमसे उसके इन दोनोंकी अनुत्कृष्ट स्थिति होती है।
६७११. क्योंकि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति वेदकसम्यग्दृष्टिके प्रथम समयमें ही होती है, अतः मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धके समय उसकी उत्पत्ति माननेमें विरोध आता है। और वेदकसम्यग्दृष्टिके पहले समयसे सम्बन्ध रखनेवाला कार्य मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्मवाले मिथ्याष्टिके साथ सम्बद्ध नहीं होसकता, अन्यथा कार्यकारण नियमके अभावका प्रसंग प्राप्त होता है। इसलिये मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति सत्कर्मवालेके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी स्थिति नियमसे अनुत्कृष्ट होती है ऐसा श्रद्धान करना चाहिये ।।
___ * वह अनुत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त कम अपनी उत्कृष्ट स्थितिसे लेकर दो समयवाली एक स्थिति पर्यन्त होती है।
६७१२. अब इस सूत्रका अर्थ कहते हैं। वह इस प्रकार है-मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धके समय सम्यक्त्वकी स्थिति अपनी उत्कृष्ट स्थितिको देखते हुए एक समय कम, दो समय कम या तीन समय कम नहीं होती है, क्योंकि सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट स्थितिके धारक वेदकसम्यग्दृष्टिके दूसरे या तीसरे समयमें मिथ्यात्व कर्मका बन्ध नहीं होता है। यदि कहा जाय कि मिथ्यात्वके निमित्तसे बंधनेवाली प्रकृतियोंका मिथ्यात्वके बिना भी बन्ध होता है सो भी बात नहीं है, क्योंकि ऐसा मानने पर वह मिथ्यात्वका कार्य नहीं होगा। अतः मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धके समय सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी स्थिति अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थितिको देखते हुए अन्तर्मुहूर्त कम अवश्य होनी चाहिये।
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