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________________ صمیمی جیمی جیمی جیمی میعی می بے حرم - wwwww ४२८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे. [हिदिविहाची अंतोमुहुत्त णा होदि । एवं ति-चदुसमयादि जावावलियमुहुत्त-दिवस-पक्ख-मास-उडु. अयण-संवच्छरादिमूणं करिय णेदव्वं । ६७१४. संपहि आवाधाकंडएणूणसम्मत्तहिदीए इच्छिज्जमाणाए सव्वजहण्णसम्मत्तद्धाए सव्वजहण्णमिच्छत्तद्धाए च उणेण आबाहाकंडएण ऊणियं मिच्छतहिदि बंधाविय पुणो पडिहग्गो होदण सम्म पडिवज्जिय मिच्छत्त क्कस्सहिदीए पबद्धाए सम्मत्तु क्कस्सहिदिमंतोमहुत्त णसत्तरिमेचं पेक्खिदूण वट्टमाणसम्मत्तहिदी एगावाहाकंडएणूणा होदि । ___ ७१५. संपहि आबाहाकंडयस्स हेहा इच्छिज्जमाणे दोहि अवहिदअंतोमुहुत्तेहि ऊणाबाहाकंडएण समयाहिएण ऊणियं मिच्छत्तु क्कस्सहिदि बंधिय अवहिदजहण्णद्धाओ तिण्णि वि अधहिदिगलणाए कमेण गालिय मिच्छत्त क्कस्सहिदीए पबद्धाए सम्मत्तहिदी सगुकस्सहिदि पेक्खिदण समयाहियाबाहाकंडएण ऊणा होदि । एवमेदमत्थपदं चित्रोणावहारिय अोदारेदव्वं जाव णिवियप्पा अंतोकोडाकोडिमेत्ता सम्मत्तहिदी जादा ति । णवरि जत्तिय-जत्तियआबाहाकंडएहि ऊणं सम्मत्तहिदिमिच्छदि तत्तिय-तत्तियमेत्ताबाहाकंडयाणि दोहि अवहिदजहण्णाद्धाहि परिहीणाणि स्थितिको देखते हुए दो समय अधिक अन्तर्मुहूर्त काल प्रमाण कम होती है। इसी प्रकार तीन और चार समयसे लेकर एक आवली. एक महत, एक दिन, एक पक्ष, एक महीना, एक ऋत, एक अयन, एक वर्ष आदिको कम करके सम्यक्त्व और सम्यमिथ्यात्वकी अनुत्कृष्ट स्थिति ले आना चाहिये। ६७१४. अब मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धके समय सम्यक्त्वकी एक आबाधा काण्डकस कम उत्कृष्ट स्थिति इच्छित है, अतः सबसे कम सम्यक्त्वके कालको और सबसे कम मिथ्यात्वके कालको आबाधाकाण्डकमेंसे कम करके जो शेष रहे उतने आबाधाकाण्डकसे कम मिथ्यात्वकी स्थितिको बंधा कर पुनः मिथ्यात्वसे निवृत्त होकर और सम्यक्त्वको प्राप्त होकर अनन्तर जो मिथ्यात्वमें जा कर मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिको बांधता है उसके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके बंधके समय सम्यक्त्वकी अन्तर्मुहूर्त कम सत्तर कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण उत्कृष्ट स्थितिको देखते हुए वर्तमान सम्यक्त्वकी स्थिति एक आबाधाकाण्डक कम होती है। ६७१५. अब मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धके समय एक आबाधाकाण्डकसे नीचे सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट स्थिति इच्छित है, अतः समयाधिक आबाधाकाण्डकमेंसे दो अवस्थित अन्तर्मुहूर्तं प्रमाण कालको कम करने पर समयाधिक आबाधाकाण्डकका जितना काल शेष रहे उतना कम मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिको बंधा कर तदनन्तर तीनों ही अवस्थित जघन्य कालोंको अधःस्थितिगलनाके द्वारा क्रमसे गला कर जो मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिको बांधता है उसके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धके समय सम्यक्त्वकी स्थिति अपनी उत्कृष्ट स्थितिको देखते हुए एक समय अधिक एक आबाधाकाण्डक काल प्रमाण कम होती है। इस प्रकार इस अर्थपदको अपने चित्तमें धारण करके सम्यक्त्वकी स्थितिको तब तक कम करते जाना चाहिये जब तक निर्विकल्प अन्तः कोडाकोड़ी प्रमाण सम्यक्त्वकी स्थिति प्राप्त हो । किन्तु इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धके समय जहां जितने जितने आवाधाकाण्डकोंसे कम सन्यक्त्वकी स्थिति इच्छित हो वहां दो अवस्थित जघन्य कालोंको उतने उतने आबाधाकाण्डकोंमेंसे कम करने पर जो काल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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