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________________ गा० २२ ] हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिविदिविहत्तियअंतरं ४२१ बारसक०-णवणोक. ज. ज. एगस०, उक्क. वासपुधत्त । अज० णत्थि अंतरं । एवं णव॑सयवेदाणं । पुरिस० मिच्छत्त०-सम्मत्त-सम्मामि०-अणंताणु० चउक० ओघं । बारसक--णवणोक० ज० ज० एगस०, उक्क. वासं सादिरेयं । अज० णत्थि अंतरं । अवगद० मिच्छत्त०-सम्मत्त-सम्मामि०-अहक-अहणोक० ज० ज० एगस०, उक्क० वासपुधत्त । अज० एवं चेव, विसेसाभावादो । सेसाणं जह० ओघं। अज० अणुक्कभंगो। ७०२.कोध० ओघं। णवरि णवक०-छण्णोक० ज० ज० एगस०, उक्क. वासं सादिरेयं । अज० णस्थि अंतरं। एवं माण-माय० । एवं लोभ । णवरि लोभसंजल ओघं । नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिवालोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्ष पृथक्त्व प्रमाण है । तथा अजघन्य स्थितिविभक्तिवालोंका अन्तर नहीं है। इसी प्रकार नपुंसकवेदवालोंके जानना चाहिये । पुरुषवेदवालोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अपेक्षा अन्तर काल ओघके समान है। तथा बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिवालोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक एक वर्ष है। तथा अजघन्य स्थितिविभक्तिवालोंका अन्तर नहीं है। अपगतवेदवालोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, आठ कषाय और आठ नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिवालोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है। तथा अजघन्य स्थितिविभक्तिवालोंका अन्तर भी इसी प्रकार जानना चाहिये, क्योंकि उससे इसमें कोई विशेषता नहीं है। तथा शेप प्रकृतियों की जघन्य स्थितिविभक्तिवालोंका अन्तर ओघके समान है और अजघन्य स्थितिविभक्तिवालोंका भंग अनुत्कृष्टके समान है। विशेषार्थ-दर्शनमोहनीयकी क्षपणा और चारित्रमोहनीयकी क्षपणामें स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके उदयका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व बतलाया है, अतः स्त्रीवेदी और नपुंसकवेदी जीवोंके मिथ्यात्व, सम्यक्त्व. बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व प्रमाण कहा । पुरुषवेदमें क्षरकश्रेणीका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक एक वर्ष है, इसलि सलिये इसमें बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक एक वर्ष कहा । अवगतवेदमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और आठ कषायोंकी जघन्य और अजघन्य स्थिति उपशमश्रेणीकी अपेक्षा पाई जाती है। तथा जो जीव स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके उदयके साथ क्षपकश्रेणीपर चढ़ते हैं उनके आठ नोकषायोंकी जघन्य और अजघन्य स्थिति पाई जाती है। आठ नोकषायोंकी अजघन्य स्थिति अपगतवेदी उपशमश्रेणीवाले जीवोंके भी सम्भव है पर इनका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है, अतः अपगतवेदमें उक्त प्रकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व कहा । शेष कथन सुगम है। . ६७०२. क्रोधकषायवालोंमें अन्तर ओघके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि नौ कषाय और छः नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिवालोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक एक वर्ष है। तथा अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका अन्तर नहीं है। इसी प्रकार मान और मायाकषायवाले जीवोंके जानना चाहिए। लोभकषायवाले जीवोंके भी इसी प्रकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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