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________________ ४१६ बयधवलासहिदे कसायपाहुई [हिदिविहत्ती ३ अोघेण मिच्छत्त-सम्मत्त-अडकसायर-छण्णोक०६-लोमसंज० ज० अंतरं ज० एगसमओ. उक्क० छम्मासा। अज. पत्थि अंतरं । सम्मामि०-अणताणु०चउक० ज. ज. एगसमो, उक्क० चउबीस अहोरत्ताणि सादिरेयाणि । अज० पत्थि अंतरं । इत्थि०णवुस० ज० ज० एगस०, उक्क० वासपुधत्तं । अज० जत्थि अंतरं । तिण्णिसंज०पुरिस० जह० ज० एगस०, उक्क० वासं सादिरेयं । अज० णत्थि अंतरं । एवं मणुसमणुसपज्ज०-पंचिं०-पंचिं०-पज्ज०-तस-तसपज्ज०-पंचमण०-पंचवचि०-कायजोगि०-ओरालि०-चक्खु०-अचक्खु० मुक्क०-भवसि०-सण्णि-आहारि त्ति । णवरि मणुसपज्ज० इत्थिवेद० जह० उक्क. छम्मासा।। ६९५. आदे० रइएसु मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक० उक्कभंगो । सम्मत्त. ज० जह० एगस०, उक. वासपुधत्तं । अज० णत्थि अंतरं । सम्मामि०-अणंताणु०चउक्क० ज० जह० एगस० । उक्क० चउबीस अहोरत्ताणि सादिरेयाणि । अज० णत्थि अंतरं । एवं पढमाए पंचिंदियतिरिक्ख-पचिं०तिरि०पज्ज० । विदियादि जाव सत्तमि त्ति एवं चेव । णवरि सम्मत्तस्स सम्मामिच्छत्तभंगो। एवं पंचिंतिरि० आदेशनिर्देश । उनमेंसे ओघकी अपेक्षा मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, आठ कषाय, छह नोकषाय और लोभसंज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल छह महीना है। तथा अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका अन्तरकाल नहीं है। सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है। तथा अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका अन्तर नहीं है । स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है। तथा अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका अन्तर नहीं है। तीन संज्वलन और पुरुषवेदकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक एक वर्ष है। तथा अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका अन्तर नहीं है। इसी प्रकार सामान्य मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त, पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय पर्याप्त, स, त्रसपर्याप्त, पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचनयोगी, काययोगी, औदारिककाययोगी, चक्षुदर्शनवाले, अचक्षदर्शनवाले. शुक्ललेश्यावाले, भव्य, संज्ञी और आहारक जीवोंके जानना चाहिये। किन्तु इतनी विशेषता है कि मनुष्य पर्याप्तकोंमें स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिविभक्तिका उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है। ६६६५ आदेशकी अपेक्षा नारकियोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंका भंग उत्कृष्टके समान है। सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है। तथा अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका अन्तर नहीं है। सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है। तथा अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका अन्तरकाल नहीं है। इसी प्रकार पहली पृथिवीके नारकी, पंचेन्द्रिय तिथंच और पंचेन्द्रिय तिथंच पर्याप्त जीवोंके जानना चाहिये । दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके नारकियोंके इसी प्रकार जानना चाहिये। किन्तु इतनी विशेषता है सम्यक्त्वका भंग सम्यग्मिथ्यात्वके समान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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