________________
४०६
गा० २२] द्विदिविहत्तीए उत्तरपयडिहिदिविहतियअंतर ज० एगस०, उक्क० अंतोमु० । सेसं श्रोधं । एवमणाहारीणं ।
६६७८. अवगद० चवीसपयडी० उक्क० ओघं । अणुक्क० ज० एगस०, उक्क० छम्मासा । णवरि दसणतिय०-अढकसा०-अहणोक. वासपुधत्तं ।
अन्तर्मुहूर्त है । शेष कथन ओघके समान है । इसी प्रकार अनाहारकोंके जानना चाहिये ।
विशेषार्थ लब्ध्यपर्याप्त मनुष्य सान्तर मार्गणा है, अत: इसमें सब प्रकृतियोंकी अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा, क्योंकि समागणाका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर फ्ल्यके असंख्यात मागप्रमाण है। तथा सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिका अन्तरकाल जिस प्रकार ओघमें घटित कर आये है उसी प्रकार यहां भी घटित कर लेना चाहिये। सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका अन्तरकाल लब्ध्यपर्याप्त मनुष्योंके समान है, अतः इनमें सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका अन्तरकाल लब्ध्यपर्याप्त मनुष्योंके समान कहा । वैक्रियिकमिश्रकाययोगका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर बारह मुहूर्त है अतः इसमें सब प्रकृतियोंकी अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर बारह मुहूर्त कहा । आहारककाययोग और आहारकमिश्रकाययोगका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है अतः इनमें सब प्रकृतियोंकी अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व कहा । शेष सब कथन सुगम है। कार्मणकाययोगमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अनुत्कृष्ट स्थितिके जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरमें कुछ विशेषता है। शेष कथन आपके समान है। बात यह है कि कार्मणकाययोगमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त होता है, अतः इसमें इन दोनों प्रकृतियोंकी अनुत्कृष्ट स्थितिका अन्तर भी उक्त प्रमाण ही प्राप्त होता है । यही बात अनाहारक मार्गणामें जानना चाहिये, क्योंकि मोहनीयकी सत्ता रहते हुए कार्मणकाययोगी जीव ही अनाहारक होता है।
. ६७८. अपगतवेदवालोंमें चौबीस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवालोंका अन्तर काल ओघके समान है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवालोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तर काल छह महीना है । किन्तु इतनी विशेषता है कि तीनों दर्शनमोहनीय, आठ कषाय और आठ नोकषायोंकी अपेक्षा अन्तरकाल वर्षपृथक्त्व है।
विशेषार्थ—मोहनीयकी सत्ता रहते हुए अपगतवेदका जघन्य अन्तर एक समय और डत्कृष्ट अन्तर छह महीना प्रमाण है, अतः इसमें अनन्तानुबन्धी चतुष्कके बिना शेष चौबीस प्रकृतियोंकी अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना प्रमाण कहा । किन्तु उपशमश्रेणीका उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है अतः अपगतवेदीके तीन दर्शनमोहनीय
और पाठ कषायोंकी अनुत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व प्रमाण प्राप्त होगा। तथा जो नपुंसकवेद और स्त्रीवेदके उदयसे उपशमश्रेणी या क्षपकश्रेणी पर चढ़ता है उसीके अपगतवेद अवस्थामें आठ नोकषायोंका सत्त्व पाया जाता है पर इनका भी उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है अतः अपगतवेदमें आठ नाकषायोंका उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व प्रमाण प्राप्त होगा। तात्पर्य यह है कि अपगतवेदमें पुरुषवेद और चार संज्वलनोंकी अनुत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्ट अन्तर छह महीनाप्रमाण और शेष उन्नीस प्रकृतियोंकी अनुत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व प्रमाण प्राप्त होता है । शेष कथन सुगम है।
५२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org