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४०८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ डिदिवि हत्ती ३ दिसुदअण्णाण०-विहंग०-आभिणि-सुद०-ओहि०-मणपज०-संजद-सामाइय-छेदो०परिहार-संजदासंजद०-असंजद०-चक्खु०-अचक्खु०-ओहिदंस०-छलेस्स०-भवसि०अभवसि०-सम्मादि०-वेदय०-खइय-मिच्छा०-सण्णि-असण्णि०-आहारए ति ।
६७७. मणुसअपज्ज० सव्वपयडि० उक० ज० एगस० । उक० अंगुलस्स असंखेजदि० भागो । अणुक्क० ज० एगस० । उक्क० पलिदो० असंखे०भागो । एवं सासण० सम्मामि०दिहि त्ति । वेउव्वियमिस्स० सव्वपयडी० उक्क० ओघं । अणुक्क ज० एगस । उक्क० बारस० मुहुत्ता। आहार-आहारमिस्स० उक्क० ओघं । अणुक्क० ज० एगस०, उक्क वासपुधत्त । कम्मइय० सम्म०.सम्मामि० उक्क० ओघ । मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, विभंगज्ञानी, मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनापर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत, संयतासंयत, असंयत, चक्षुदर्शनवाले, अचक्षुदर्शनवाले, अवधिदर्शनवाले, छहों लेश्यावाले, भब्य, अभव्य, सम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, क्षायिकप्सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि, संज्ञो, असंज्ञी और आहारक जीवोंके जानना चाहिये।
विशेषार्थ-यहां पर सब प्रकृतियोंको उत्कृष्ठ स्थितिका जो जघन्य अन्तरकाल एक समय बतलाया है सो स्पष्ट ही है, किन्तु उत्कृष्ट अन्तरकाल अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण बतलाते हुए उसका वीरसेन स्वामीने जो खुलासा किया है उसका भाव यह है कि प्रत्येक स्थितिका उत्कृष्ट बन्धकाल अन्तर्मुहूर्त है अतः इस हिसाबसे संख्यात कोड़ाकोड़ी सागरप्रमाण सब स्थितियोंका बन्धकाल जोड़ा जाय तो कुल कालका जोड़ अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण होता है, क्योंकि अन्तर्मुहूर्तसे संख्यात कोड़ाकोड़ी सागरोंके समयोंको गुणित करनेपर जो प्रमाण प्राप्त होता है वह एक अंगुलप्रमाण या अंगुलके संख्यातवें भागप्रमाण न होकर अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण ही होता है । अब यदि कुछ जीवोंने मोहनीयकी सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिको प्राप्त किया, अनन्तर वे अन्यस्थितिविकल्पके साथ अन्तर्मुहूर्तकाल तक रहें और इतने कालके भीतर अन्य कोई भी जीव उत्कृष्ट स्थितिको प्राप्त न हो तो सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्ट अन्तर काल उक्त प्रमाण प्राप्त हो जाता है । परन्तु मोहनीयकी सब प्रकृतियोंकी अनुत्कृष्ट स्थितिका अन्तरकाल नहीं पाया जाता, क्योंकि अनुत्कृष्ट स्थितिवाले जीवोंका सर्वदा सद्भाव पाया जाता है। ऊपर सातों पृथिवियोंके नारकी आदि और जितनी मार्गणाएं गिनाई हैं उनमें भी यह व्यवस्था बन जाती है, अतः उनके कथनको ओघके समान कहा।
६७७. मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवालोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल अंगुलके असंख्यातवे भागप्रमाण है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवालोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसी प्रकार सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके जानना चाहिये। वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंमें सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवालोंका अन्तरकाल ओघके समान है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवालोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल बारहमुहूर्त है । आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगियोंमें उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवालोंका अन्तरकाल ओघके समान है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवालों का जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षपृथक्त्व है। कार्मणकाययोगियोंमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवालोंका अन्तरकाल ओघके समान है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवालोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तर काल
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