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गा० २२ j द्विदिविहत्तीए उत्तरपयडिद्विदिविहत्तियकालो
३६७ दिय-पंचिं०पज्ज०-तस-तसपज्ज०-पंचमण०-पंचवचि०-कायजोगि०-ओरालि -तिण्णिवेद०-चत्तारिकसा०-चक्खु०-अचक्खु० तिण्णिले०-भवसि०-सण्णि०-आहार त्ति । गवरि सोहम्मीसाणादिदेवेसु इत्थि-णवुस० तेउपम्मलेस्सासु च छण्णोकसाय० जहण्णहिदिकालो जह० एगसमो, उक्क० संखेजा समया । इत्थि० णवुस० ओघ छण्णोक भंगो । पुरिस० इथि०-णवुस० छण्णोक०भंगो। णवुस० इत्थिवेद० ओघं छण्णोक भंगो ।
६६३. आदेसेण णेरइएमु सत्तावीसपयडी० ज० जह० एगस०, उक्क० आवलि० असंखे भागो । अज० सव्वद्धा । सम्मत्तं ओघं । एवं पढमपुढवि०-पंचिं०तिरिक्ख-पंचिंतिरि०पज्ज० । पंचिंतिरिक्खजोणिणीसु एवं चेव । णवरि सम्मत्तस्स
देव, पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रियपर्याप्त, :स, सपर्याप्त, पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, काययोगी, औदारिककाययोगी, तीनों वेदवाले, चारों कषायवाले, चक्षुदर्शनवाले, अचक्षुदर्शनवाले तीन लेश्यावाले, भव्य, संज्ञी और आहारक जीवोंके जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि सौधर्म और ऐशान आदि कल्पके देवोंमें स्त्रीवेद और नपुंसकवेदमें तथा पीत और पालेश्यावालोंमें छह नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । स्त्रीवेदवालोंमें नपुंसकवेदकी जघन्य और अजघन्य स्थितिविभक्तिवालोंका काल ओघके समान है किन्तु इतनी विशेषता है कि जघन्य स्थितिका काल ओघसे छह नोकषायोंके समान है। पुरुषवेदवालोंमें स्त्र वेद और नपुसकवेदका भंग छह नोकषायोंके समान है । नपुसकदवालोंमें स्त्रीवेदकी जघन्य और अजघन्य स्थितिका काल ओघके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि जघन्य स्थितिका काल ओघसे छह नोकषायोंके समान है।
विशेषार्थ—यहां जिन मार्गणाओंमें सब प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिका काल ओके समान बतलाया है उनमें सौधर्मसे लेकर उपरिम ग्रैवेयक तकके देव, पीत और पद्मलेश्यावाले तथा तीनों वेदवाले जीव भी सम्मिलित हैं परन्तु इन मार्गणाओंमें कुछ प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके कालमें कुछ विशेषता बतलाई है जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है-बात यह है कि पुरुषवेदको छोड़ कर इन पूर्वोक्त मार्गणाओंमें एक जीवकी अपेक्षा छह नोकषायोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त न होकर एक समय है अतः यहां नाना जीवोंकी अपेक्षा छह नोकषायोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय ही प्राप्त होगा। तथा स्त्रीवेदियोंके नपुंसकवेदकी जघन्य स्थिति, पुरुषवेदियोंके स्त्री और नपुंसकवेदकी जघन्य स्थिति तथा नपुंसकवेदियोंके स्त्री वेदकी जघन्य स्थिति अन्तिम स्थिति काण्डकके पतनके समय होती है अतः इन तीनों वेदवाले जीवोंके उक्त प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल ओघसे छह नोकषायोंके समान कहा है। तथा अजधन्य स्थितिका काल सर्वदा है यह स्पष्ट ही है।
६६६३. आदेशकी अपेक्षा नारकियोंमें सत्ताईस प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण है। तथा अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका काल सर्वदा है। सम्यक्त्वकी अपेक्षा ओघके समान काल है । इसी प्रकार पहली पृथिवी, पंचेन्द्रियतिथंच और पंचेन्द्रियतिथंच पर्याप्तकोंमें जानना चाहिए। पंचेन्द्रियतियेच योनिमतियोंमें भी इसी प्रकार जानना चाहिए । किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें
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