SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 415
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ~ ३६६ अयधवलासहिदे कसायपाहुडे [द्विदिविहत्ती ३ पलिदो० असंखे भागमेत्तजीवाणमावलियाए असंखे भागमेत्तुवकमणकंडएसु तत्थ एगुक्कस्सकंडयकालग्गहणादो । ___® छण्णोकसायाणं जहणणहिदिविहत्तिएहि णाणाजीवेहि कालो केवडिओ? ६६०. सुगममेदं । * जहण्णुकस्सेण अंतोमुहुत्तं । $ ६६१. कुदो ? चरिमट्टिदिकंडयउक्कीरणकालग्गहणादो । एत्थ णिसेया चेय पहाणा कया ण कालो, एगसमयं मोत्तण अंतोमुहेत्तकालपरूवणण्णहाणुववत्तीदो। ६६२. एवं जइवसहाइरियमुत्ताणं देसामासियाणं परूवणं काऊण संपहि एदेहि सूचिदत्थाणं लिहिदुच्चारणमणुवत्तइस्सामो । जहण्णए पयदं । दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण । तत्थ ओघेण मिच्छत्त-सम्मत्त-बारसक०-तिण्णिवेद० जहण्णहिदिवि०कालोज० एगस०, उक्क० संखेज्जासमया । अज० सव्वद्धा । सम्मामि०-अणताणु० चउक्क० ज० ज० ज० एगसमओ, उक्क० आवलि० असंखे०भागो । अज० सव्वद्धा । छण्णोक० जहण्णुक्क० अंतोमु० । अज० सव्वद्धा । एवं सोहम्मीसाणादिजाव उवरिमगेवज्ज०-पंचिंविसंयोजना करनेवाले पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण जीवोंके आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण उपक्रमण काण्डक होते हैं। उनमेंसे यहां एक उत्कृष्ट काण्डकका काल लिया गया है। * छह नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले नाना जीवोंका कितना काल है। ६६६०. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। ६६६१. शंका-जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त क्यों है ? समाधान-क्योंकि यहां अन्तिम स्थितिकाण्डकके उत्कीरण कालका ग्रहण किया है। यहां पर निषेकोंकी प्रधानता है कालकी नहीं, अन्यथा एक समयको छोड़कर अन्तर्मुहूर्त कालका कथन नहीं बन सकता था। ६६६२, इस प्रकार यतिवृषभ आचार्यके देशामर्षक सूत्रोंका कथन करके अब इनसे सूचित होनेवाले अर्थों पर जो उच्चारणा लिखी गई है उसका अनुसरण करते हैं-जघन्य कालका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । उनमेंसे ओघ की अपेक्षा मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, बारह कषाय और तीनों वेदोंकी जघन्य स्थिति विभक्तिवाले जीवों का जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। तथा अजघन्य स्थितिविभक्ति वाले जीवोंका काल सर्वदा है। सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण • है। तथा अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका काल सर्वदा है। छह नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । तथा अजघन्य स्थितिविभक्तिवाल जीवोंका काल सर्वदा है। इसी प्रकार सौधर्म कल्पसे लेकर उपरिमोवेयक तकके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy