SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 407
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३८५ गयधवलासहिदे कसायपाहुडै [ हिदिविहत्ती ३ अणुक्कस्सहिदिसंतं सबजीवेसु उवगएमु तिहुवणासेसजीवाणमेगसमयं चेव उक्कस्सद्विदिदसणादो । उक्क० पलिदो० असंखे०भागो। एकस्स जीवस्स जदि उक्कस्सहिदिकालो अंतोमहुत्तमेत्तो लब्भदि तो आवलियाए असंखे०भागमेत्तजीवाणं किं लभामो त्ति फलगुणिदिच्छाए पमाणेणोवट्टिदाए असंखेजावलियमेत्तुक्कस्सहिदिसंतकालुवलंभादो । अणुक्कस्सहिदिसंतकम्मिया केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवे पडुच्च सव्वद्धा । कुदो ? तिसु वि कालेसु अणुक्कस्सहिदिसंतकम्मियजीवाणं संभवादो। * णवरि सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणमुक्कस्सहिदी जहणणेण एगसमत्रो। ६४८. कुदो ? उक्कस्सहिदिसंतकम्पियमिच्छादिहिणा मोहटावीससंतकम्मिएण वेदगसम्म पडिवण्णपढमसमए चेव मिच्छत्तक्कस्सहिदीए सम्मत्त-सम्मामिच्छत्तेसु संकामिदाए एगसमयं चेव उक्कस्सहिदिकालुवलंभादो । उक्कस्सहिदिसंतकम्मियमिच्छादिही सम्मामिच्छ किण्ण णीदो ? ण, तत्थ दंसणमोहणीयस्स संकमाभावेण सम्मत्तसम्मामिच्छत्ताणमुक्कस्सहिदीए करणुवायाभावादो । * उकस्सेण आवलियाए असंखेजदिभागो । प्राप्त होने पर तीन लोकके सब जीवोंके एक समय तक ही उत्कृष्ट स्थिति देखी जाती है। तथा उत्कष्टकाल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है, क्योंकि एक जीवके उत्कृष्ट स्थितिका काल यदि अन्तमुहूर्त है तो आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण जीवोंके कितना काल प्राप्त होगा इस प्रकार त्रैराशिक करके इच्छाराशिको फलराशिसे गुणित करके जो लब्ध आवे उसमें प्रमाणराशिका भाग देने पर असंख्यात श्रावलिप्रमाण काल तक उत्कृष्ट स्थितिका सत्त्व पाया जाता है । अनुत्कृष्ट स्थितिसत्कर्मवाले जीवोंका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है, क्योंकि तीनों ही कालों में अनुत्कृष्ट स्थितिसत्कर्मवाले जीवोंका पाया जाना संभव है । * किन्तु इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल एक समय है। ६६४८. शंका-इन दोनों प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्यकाल एक समय क्यों है ? समाधान-जिसके मोहनीयकी अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्ता है ऐसा कोई एक उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्मवाला मिथ्यादृष्टि जीव वेदक सम्यक्त्वको प्राप्त होनेके पहले समयमें ही मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वमें संक्रमण कर देता है, अतः उसके एक समय काल तक उत्कृष्ट स्थिति पाई जाती है। अतः इन दोनों प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल एक समय है। शंका-उत्कृष्ट स्थिति सत्कर्मवाला मिथ्यादृष्टि जीव सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थानको क्यों नहीं प्राप्त कराया गया ? समाधान-नहीं, क्योंकि सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें दर्शनमोहनीयका संक्रमण नहीं होनेसे वहाँ सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति नहीं प्राप्त की जा सकती है। * तथा उत्कृष्ट काल आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy