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गा०२२] द्विदिविहत्तीए उत्तरपयडिहिदिविहत्तियकालो
३८७ १६४५. तेउ०-पम्म० तेवीसपयडि० जह० खेत्तभंगो, अज० अणुक्क भंगो। सम्मामि० ज० अज० अणुक्क भंगो। अणंताणु० चउक्क० ज० पंचिं०भंगो, अज० अणुक्क भंगो। सुक्क० तेवीसपयडी० ज० खेत्तभंगो । अज० अणुभंगो । सम्मामि०अणताण चउक्क० ज० अज० आणदभंगो ।
६४६. खइय० सव्वपयडी० ज० खेत्तभंगो । अज० अणुभंगो । उवसम० चउवीसपयडी० ज० खेत्तभंगो, अज० अणुक्क० भंगो । अणंताणु०चउक्क० ज० अज० अह चोइस० । सम्मामि०-सासणसम्मा० उवसमभंगो ।
एवं पोसणाणुगमो समत्तो । ॐ जधा उक्कस्सहिदिबंधे णाणाजीवेहि कालो तथा उक्कस्सहिदिसंतकम्मेण कायव्वो।
६४७. उक्कस्सहिदिबंधे जहा णाणाजीवेहि कालो परूविदो तहा उक्कस्सहिदिसंतकम्मस्स वि परूवेयन्यो । तं जहा–छव्वीसपयडीणमुक्कस्सद्विदिसंतकम्मिया केवचिरं कालादो होंति ? जह० एगसमो; एगसमयमुक्कस्सहिदि बंधिय विदिसमए
६६४५. पीत और पद्मलेश्यावाले जीवोंमें तेईस प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका स्पर्श क्षेत्रके समान है। तथा अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका भंग अनुत्कृष्टके समान है । सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य और अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका भंग अनुत्कृष्टके समान है । अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका भंग पंचेन्द्रियोंके समान है। तथा अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका भंग अनुत्कृष्टके समान है। शक्ललश्यावालोंमें तेईस प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका स्पश क्षेत्रके समान है। तथा अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका भंग अनुत्कृष्टके समान है। सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य और अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका भंग आनतकल्पके समान है।
६६४६. क्षायिक सम्यग्दृष्टियोंमें सब प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका स्पर्श क्षेत्रके समान है। तथा अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका स्पर्श अनुत्कृष्टके समान है । उपशमसम्यग्दृष्टियोंमें चौबीस प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका स्पर्श क्षेत्रके समान है। तथा अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका स्पर्श अनुत्कृष्टके समान है। अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य और अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने प्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। सम्यग्मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंमें उपशम सम्यग्दृष्टि जीवोंके समान भंग है।
इस प्रकार स्पर्शनानुगम समाप्त हुआ। * जिस प्रकार उत्कृष्ट स्थितिबन्धमें नाना जीवोंकी अपेक्षा काल कहा है उसी प्रकार उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्मकी अपेक्षा कालका कथन करना चाहिये।
६६४७. उत्कृष्ट स्थितिबन्धमें जिस प्रकार नाना जीवोंकी अपेक्षा कालका कथन किया है उसी प्रकार उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्मका भी काल कहना चाहिये। जो इस प्रकार है-छब्बीस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्मवाले जीवोंका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय है, क्योंकि एक समय तक उत्कृष्ट स्थितिका बांधकर दूसरे समयमें उन सब जीवोंके अनुत्कृष्ट स्थितिसत्त्वको
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