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________________ गा० २२ ] हिदिविहत्तीए सामित्त ओरालि०-अवगद०--लोभक०-आभिणि-सुद०-ओहि०-मणपज्ज०-संजद०--सुहुम०चक्खु०-अचक्खु०-ओहिदंस०-सुक्क०-भवसि०-सम्मादि०-खइय०-सण्णि-आहारि त्ति । - ३३. आदेसेण णेरइएसु मोह जह• कस्स ? अण्णद० असण्णिपच्छायदस्स विदियसमयविग्गहे वट्टमाणस्स तस्स जहणिया हिदी । एवं पढमपुढवि०-देवभवण-वाण० वत्तव्वं । विदियादि जाव छहि त्ति मोह० जह• कस्स ? अण्णद० जो उक्क० आउअहिदीए उववण्णो अप्पिदपुढ विसु अंतोमुहुरेण पढमसमत्तं पडिवज्जिय पुणो अंतोमुहुत्तेण अणंताणुबंधिचउक्कं विसंजोइय चरिमसमयणिप्पिदमागो तस्स जहणिया हिदी । एवं जोइसि० । ३४. सत्तमाए पुढवीए मोह. जह० कस्स ? अण्णद. जो उक्क० आउहिदीए उववण्णो अंतोमुहुत्तेण पढ मसम्मत्त पडिवण्णो पुणो अणंताणुबंधिचउक्कं विसंजोइय पर्याप्त मनुष्य और मनुष्यनी इन तीन प्रकारके मनुष्योंके तथा पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय पर्याप्त, त्रस, त्रस पर्याप्त, पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, काययोगी, औदारिककाययोगी, अपगतवेदी, लोभकषायी, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनःपयेंयज्ञानी, संयत, सूक्ष्मसांपरायिकसंयत, चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी, शुक्ललेश्यावाले, भव्य, सम्पदृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, संज्ञी, और आहारक जीवोंके जानना चाहिये। ६३३. आदेशकी अपेक्षा नरकियोंमें मोहनीय की जघन्य स्थिति किसके होती है ? जो असंज्ञियोंमेंसे नरकमें आया है और जो विग्रहगतिके दूसरे समयमें विद्यमान है ऐसे नारकीके मोहनीयकी जघन्य स्थिति होती है। इसी प्रकार पहली पृथिवीके नारकी जीवोंके तथा सामान्य देव, भवनवासी और व्यन्तर देवोंके कहना चाहिये । विशेषार्थ-असंज्ञी जीव नरकमें उत्पन्न हो सकता है और उसके विग्रहगतिमें असंज्ञीके योग्य स्थितिवन्ध होता है इसलिए यहां असंज्ञियोंमेंसे आए हुए नारकी जीवके द्वितीय विग्रहमें जघन्य स्थिति कही है। मात्र ऐसे असंज्ञी जीवके प्राक्तन सत्त्व तत्प्रायोग्य जघन्य स्थितिबन्धसे अधिक नहीं होना चाहिए। यह असंज्ञी प्रथम नरकके समान भवनवासी और व्यन्तर देवों में भी उत्पन्न होता है इसलिए प्रथम नरक. सामान्य देव, भवनवासी देव और व्यन्तर देवोंमें यह स्वामित्व इसी प्रकार दिया है। दूसरी पृथिवीसे लेकर छठी पृथिवी तकके नारकियोंमें मोहनीयकी जघन्य स्थिति किसके होती है। जो कोई एक जीव दूसरी पृथिवीसे लेकर छठी पृथिवी तक अपनी अपनी पृथिवीके अनुसार उत्कृष्ट आयुको लेकर उत्पन्न हुआ है, तथा जिसने उत्पन्न होनेके अन्तर्महूर्त कालके बाद प्रथमोपशम सम्यक्त्वको प्राप्त करके अनन्तर अन्तमुहुर्त कालके द्वारा अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विसंयोजना की है उस जीवके नरकसे निकलनेके अन्तिम समयमें मोहनीयकी जघन्य स्थिति होती है। इसी प्रकार ज्योतिषी देवोंके मोहनीयकी जघन्य स्थिति जाननी चाहिये । ६ ३४. सातवीं पृथिवीमें मोहनीयकी जघन्य स्थिति किसके होती है ? जो उत्कृष्ट आयुको लेकर सातवें नरकमें उत्पन्न हुआ तथा अन्तर्मुहूर्त कालके पश्चात् जिसने प्रथमोपशम सम्यक्त्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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