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जयघवत्लासहिदे कसायपाहुडे
[हिती ३
९ ६३६. आदेसेण णेरइएसु सत्तावीसपयडी० ज० खेत्तभंगो | अज० अणुक्क • भंगो । सम्मामि० ज० अज० अणुक्क० भंगो । पढमाए खेत्तभंगो । विदियादि जाव सत्तमि त्ति छव्वीसपयडी० जह० खेत्तभंगो । अज० अणुक्क० भगो । सम्पत्त० -सम्मामि० ज० ज ० अणुक्क० भंगो ।
९ ६३७. तिरिक्ख • मिच्छत्त- बारसक० भय - दुर्गुछ० ज० ज० सव्वलोगो । अण्णो पाढो जह० खेत्तं पोसणं च लोग० संखेज्जदिभागो ति । सत्तणोक० अनंताणु ०चउक्क०–सम्मत्त० ज० अ० खेत्तभंगो । सम्मामि० ज० अज० अणुक्क० भंगो | वरि सम्मत्त • अज० अणुक्क भंगो । एवं काउ ० असंजद० एवं चेव । णवरि
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९६३६. प्रदेशकी अपेक्षा नारकियों में सत्ताईस प्रकृतियों की जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवों का स्पर्श क्षेत्र के समान है । तथा अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका स्पर्श अनुत्कृष्टके समान है | सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य और अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका स्पर्श अनुत्कृष्टके समान है । पहली पृथिवीमें स्पर्श क्षेत्र के समान है । तथा दूसरीसे लेकर सातवीं तकके नारकियों में छब्बीस प्रकृतियों की जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका स्पर्श क्षेत्रके समान है और अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका स्पर्श अनुत्कृष्टके समान है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य और जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका स्पर्श अनुत्कृष्टके समान है ।
विशेषार्थ – नारकियों में मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य स्थिति उन जीवों के प्राप्त होती है जो असंज्ञी जीव अपनी जघन्य स्थितिके साथ नरकमें उत्पन्न होते हैं । सम्यक्त्वकी जघन्य स्थिति कृतकृत्यवेदक सम्यग्दृष्टि नारकियोंके होती है और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघम्य स्थिति विसंयोजना करनेवाले नारकियोंके होती है । अब यदि इनके स्पर्शका विचार किया जाता है तो वह लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण ही प्राप्त होता है । क्षेत्र भी इतना ही हैं, अतः इनके स्पर्शको क्षेत्रके समान बतलाया है। उक्त प्रकृतियोंकी अजघन्य स्थितिवालों का स्पर्श अनुत्कृष्टके समान है यह स्पष्ट ही है। जिनके सम्यग्मिथ्यात्वकी सत्ता है उन सब नारकियों के सम्यग्मिथ्यात्व की अजघन्य स्थिति होती है । इसमें भी जो नारकी सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलनाके अन्तिम समयमें हैं उनके उसकी जघन्य स्थिति होती है । अब यदि इनके वर्तमान तथा कुछ पदों की अपेक्षा अतीत स्पर्शका विचार किया जाता है तो वह लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण प्राप्त होता है तथा मारणान्तिक और उपपाद पदकी अपेक्षा अतीत कालीन स्पर्श कुछ कम छह बटे चौदह राजु प्राप्त होता है । अनुत्कृष्टकी अपेक्षा भी स्पर्श इतना ही है, अतः यहां सम्यग्मिथ्यात्व की जघन्य और अजघन्य स्थितिवालोंका स्पर्शं अनुत्कृष्टके समान बतलाया है । सर्वत्र पहली पृथिवीका स्पर्श क्षेत्रके समान ही प्राप्त होता है अतः यहां पहली पृथिवीमें सब प्रकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिवालोंका स्पर्श क्षेत्रके समान बतलाया है । द्वितीयादि पृथिवियोंमें भी इसी प्रकार जघन्यादि स्थितियों के स्वामियोंका विचार करके स्पर्श समझ लेना चाहिये ।
९ ६३७. तिर्यंचोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य और अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने सब लोकका स्पर्श किया है। यहां एक दूसरा पाठ है जिसके अनुसार उक्त प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका क्षेत्र और स्पर्शन लोकके संख्यातवें भागप्रमाण है। सात नाकषाय, अनन्तानुबन्धी चतुष्क और सम्यक्त्वकी जघन्य और अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका स्पर्श क्षेत्रके समान है । तथा सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य और अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवों का स्पर्श अनुत्कृष्टके समान है । किन्तु इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वकी
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