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________________ ३५० १५८६. एदमहियार संभालणसुतं सुगमं । * तं चैव पदं । जयधवलासहिदे कसायपाहुडे * एदे विहत्तिया । ५८७ जमट्ठपदमुकस्सम्मि परूविदं तं चैव एत्थ परूवेयव्वं विसेसाभावादो । वरि जहण्णमजहण्णं ति वत्तव्वं एत्तियो चैत्र विसेमो । पदे मिच्छत्तस्स सब्वे जीवा जहरियाए द्विदीए सिया ६५८८. मिच्छत्तक्खवएहि दुसमयकालेगणिसेय धारएहि विणा मिच्छत्तअजहिदी चैव वहिदाणं सव्वेसिं जीवाणं कयाइ दंसणादो । * सिया अविहत्तिया च विहत्ति च । $ ५८९. कुदो ? मिच्छत्तअजहण्णद्विदिधारएहि सह कम्हि वि काले एकस्स जीवस्स जहणविदिधारयस्सुवलंभादो । [ द्विदिवत्ती ३ * सिया विहत्तिया च विहत्तिया च । ६५९० कुदा ? कम्हि वि काले अजहण्णद्विदिविहत्तिएहि सह संखेज्जाणं जहण्णद्विदिविहत्तियाँ मुवलंभादो । एवमेत्थ तिष्णि भंगा । ९८६ अधिकार के सम्हालनेके लिये यह सूत्र आया है जो सुगम है । * यहां भी वही अर्थपद है । ९ ५८७, जो अर्थपद उत्कृष्ट में कहा है वही यहां कहना चाहिये, क्योंकि उससे इसमें कोई विशेषता नहीं है । किन्तु इतनी विशेषता है कि उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट के स्थान में जघन्य और अजघन्य कहना चाहिये । * इस अर्थपदके अनुसार कदाचित् सव जीव मिथ्यात्वकी जघन्य स्थिति के अविभक्तिवाले हैं । 8. क्योंकि एक निषेककी दो समय काल प्रमाण स्थितिको धारण करनेवाले मिथ्यात्वके क्षपक जीवोंके बिना मिध्यात्वकी अजघन्य स्थिति में अवस्थित सब जीव कभी भी पाये जाते हैं । * कदाचित् बहुत जीव मिथ्यात्व की जघन्य स्थितिके अविभक्तिवाले हैं और एक जीव मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाला है । ९५८६. शंका- ऐसा क्यों है ? समाधान- क्योंकि किसी भी कालमें मिध्यात्वकी अजघन्य स्थितिको धारण करनेवाले जीवोंके साथ जघन्य स्थितिको धारण करनेवाला एक जीव पाया जाता है । * कदाचित् बहुत जीव मिध्यात्वकी जघन्य स्थितिके विभक्तिवाले हैं और बहुत जीव मिथ्यात्वको जघन्य स्थिति विभक्तिवाले हैं। 1 Jain Education International ९५६०. शंका- ऐसा क्यों है ? समाधान- क्योंकि किसी भी कालमें अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंके साथ जघन्य स्थितिविभक्तिवाले संख्यात जीव पाये जाते हैं । इस प्रकार यहां तीन भंग होते हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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