SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 354
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गा० २२ ] हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिट्ठिदिअंतरं ३३५ ९५६०. तिरिक्खेसु मिच्छत्त - बारसक० -भय-दुर्गुछा० जह० ज० अंतोम०, उक्क • असंखेज्जा लोगा । अज० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । सम्मत्त० जह० णत्थि अंतरं । अज० अणुक्कस्सभंगो । सम्मामि० जह० ज० पलिदो० असंखे० भागो । उक्क० ओघं । अता- चउक० जह० श्रोधं । अज० जह० अंतोमु०, उक्क० तिण्णि पलिदो ० देसूणाणि । सत्तणोक० ज० ज० पलिदो० असंखे०भागो, उक्क० अतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । अज० जहण्णुक्क० एयस० । अज० ज० एस ०, तक नारकियोंके मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकाषायोंकी जघन्य स्थिति अन्तिम समय में ही प्राप्त हो सकती है अतः इनके उक्त प्रकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य स्थिति का अन्तरकाल नहीं प्राप्त होता । द्वितीयादि पृथिवियों में कृतकृतत्यवेदक सम्यग्दृष्टि नहीं उत्पन्न होता है अतः यहां सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थिति के अन्तरका कथन समान है । वह सामान्य नारकियोंके समान यहां भी घटित कर लेना चाहिये । शेष कथन सुगम है। सातवें नरकमें मिथ्यात्व बाहर कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थिति अन्त के अन्तमुहूर्त में कम से कम एक समय तक और अधिक से अधिक अन्तर्मुहूर्त काल तक प्राप्त हो सकती है । अब जिसने इस अन्तमुहूर्तके मध्य में एक समय के लिये जघन्य स्थिति प्राप्त की उसके अजघन्य स्थितिका जघन्य अन्तर एक समय पाया जाता है । तथा जिसने अन्तर्मुहूर्त तक जघन्य स्थिति प्राप्त करके अन्त में अजघन्य स्थिति प्राप्त की उसके अजघन्य स्थितिका उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त पाया जाता है । तथा नोकषायोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय बतलाया है, अतः इनकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय प्राप्त होता है । शेष कथन प्रोघके समान है । किन्तु यहां भी कृतकृत्यवेदक सम्यग्दृष्टि उत्पन्न नहीं होता, अतः यहां सम्यक्त्वका कथन सम्यग्मिथ्यात्व के समान जानना । § ५६० तिर्यंचों में मिथ्यात्व, बारह कषाय, भय और जुगुसाकी जघन्य स्थितिका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है । तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिका अन्तर नहीं है । तथा अजघन्य स्थितिका भंग अनुत्कृष्ट स्थिति के समान है । सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिका जघन्य अन्तर पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण और अजघन्य स्थितिका जघन्य अन्तर एक समय तथा दोनोंका उत्कृष्ट अन्तर के समान है । अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य स्थितिका अन्तर ओघके समान है। तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य है । सात नोकषायोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य अन्तर पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है । तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय 1 विशेषार्थ — पहले तिर्यंचोंके मिथ्यात्व, बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी अजघन्य स्थितिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टकाल असंख्यात लोकप्रमाण बतला आये है अतः वही यहां इनके उक्त प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल जानना चाहिये । तथा पहले इनके उक्त प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त बतला आये हैं अतः वही यहां इनके उक्त प्रकृतियोंकी अजघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल जानना चाहिये । तिर्यंचोंके सम्यक्त्वकी जघन्य स्थिति कृतकृत्यवेदक सम्यग्दृष्टिके प्राप्त होती है अतः इनके सम्यक्त्वकी जघन्य स्थिति अन्तरकालका निषेध किया है । तिर्यंचों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy